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________________ १२४] योगसार दीका। कर्म पुगलोंके संयोगस व्यवहारनयसे अशुद्धा झलकता है, कौनी इसके शुद्ध स्वभावको इक दिया है | निश्चय नयमे यही आत्मा इस अपवित्र औदारिक शरीरसे व तैजस व कार्मण शरीरसे व रागादि विकारी भावोंमे भिन्न परमानंदमयी ही परम शुद्ध ज्ञाता दृष्टा परमात्मा म्प दीखता है | यही दृष्टि ध्याताके लिये परम उपकारी है । अतएर जिनवाणीके भीतर दोनों नयोंकी मुख्यताम आत्माके स्वरूपके बतानेवाले ग्रंथोंका भलेप्रकार अभ्यास करे । जीव, अजीय. आम्ब, बंध, संवर, निर्जरा व मोक्ष इन सात तत्वोंको समझनेसे व्यवहार नयग्ने आत्माके अशुद्ध स्वरूपका व अशुद्धम शुद्ध होनेका सर्व ज्ञान होता है । द्रव्यसंग्रह तथा नत्वार्थसूत्र ये दो ग्रंथ बड़े उपयोगी हैं, इनका सूक्ष्मतासे अभ्यास करके इनकी टीकाएं देख-बृहन द्रव्यसंग्रह व सर्वार्थसिद्धि, राजवालिक, शोकवार्तिक । विशप जानने के लिये गोम्मदसार जीवकांह व कर्मकांडका भलेप्रकार अभ्यास करे व आचार शास्त्रोंसे मुनि व श्रापककी बाहरी क्रियाके. पालनेकी विधि जाने । मूलाचार व रत्नकरंट श्रावकाचारका मनन करे । महान् पुरुषोंकि जीवन चरित्रको भी जाने कि उन्होंने मोक्षमार्गका किसतरह साधन किया था। कर्म सापेक्ष आत्माकी अवस्थाका ठीक परिचय प्राप्त करें। फिर निश्श्य नयकी मुख्यतःसे आत्माको जीतनेके लिये महान योगी श्री कुन्दकुन्दाचार्थ कुन पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, अपराहुड, समयसार, नियमसारका भलेप्रकार अभ्यास करे, परमात्म-प्रकाशका मनन करे, तय दर्पणके समान विदित होगा कि मेरे ही शरीरके भीतर "परमात्मादेव बिराजमान हैं। शास्त्रोंके झानके लिये व्याकरण व न्यायको भी जाने | तब शब्द ज्ञान व युक्तिका ज्ञान ठीक २ होगा व अन्य दर्शनवालोंके मतसे
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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