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________________ ३२२] योगसार टीका । एकांत होगा उतना ध्यान सिद्ध होगा। स्त्री, पुरुष, नपुंसकों के संपर्क रहित शीत गर्मीकी व डांस मच्छरकी बाधा रहित परम शांत स्थानको ध्यानके लिये खोजे । ध्यानका समय अतिप्रातःकाल सर्वोत्तम है, मध्यम सायंकाल है, जघन्य मध्याह्नकाल है | ध्यानको भूमिपर, पाषाण शिलापर, काष्टासनपर, चढाईपर, किसी समतल स्थान पर करें। जहां शरीरको स्थिर जमाकर रखसके, मन वचन काय शुद्ध हो, मनमें ध्यानके सिवाय और कोई चिंता न हो। जब तक ध्यान करना हो दूसरे कामोंका विचार न करे। ध्यान के समय मौन रहे या मंत्र जपे । कोई वार्तालाप न करें, शरीर नम्र हो या यथासंभव श्रावकका घोड़े वस्त्र सहित हो, रोगी न हो, भरपेट न हो, भूख प्यास से पीडित न हो, आसन जमा करके बैठे । निश्चल काय रहे, सीधा मुत्र हो । इसतरह बैठकर कुछ देर बारह भावना विचार करके चित्तको वैराग्यवान बनाये, फिर निश्चय नयसे जगतको देखकर राग द्वेष मित्रादे। फिर अपने ही आत्माको देखे कि यह शुद्ध निरंजन परमात्मा है, शरीर में व्यापक परम निर्मल है । मन जलके समान या स्फटिकके समान देखकर वारवार न्यावे । मनकी स्थिरता के लिये कभी कभी कोई मंत्र पढ़ कभी कभी गुणोंका विचार करे | तत्त्वानुशासन में कहा है माध्यस्यं समतोपेक्षा वैराग्यं साम्यमस्पृहः । चैतृष्यं परमः शांतिरित्येकोऽर्थोऽभिधीयते ॥ १३२ ॥ दिधासुः स्वं परं ज्ञात्वा श्रद्धाय च यथास्थिर्ति । विहायान्यदमर्थित्वात् स्वमेववतु पश्यतु ॥ १४३ ॥ भावार्थ - ध्याताको माध्यस्थ भाव, समता, उपेक्षा, वैराग्य, साम्यभाव, निष्पृहता, तृष्णा रहितता, परमभाव, शांत भावमें लीन
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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