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________________ २७२] योगसार टीका। एयई लक्त्रण) उस परमात्माकं या आत्माक ये ही लक्षण हैं। भावार्थ-आत्माकं न्यानकं लिये आत्माके स्वरूपकी भावना करनी योग्य है । निश्चयसे यह आत्मा एक सत पदार्थ है. ज्ञायक अत्रण्ड प्रकाशरूप है | केवल अनुभव योग्य है । व्यवहार नबने यह अनेक प्रकार त्रिचारा जामता है। दो प्रकार विचार करें तो यह गुण पर्यायवान है, अपने भीतर अनेक गुण व पयायोंको रखता है. या ग्रह ज्ञान दर्शन स्वरूप है। यह एक ही काल अपनेको व सर्व परपदार्थों को देखने जानने वाला है। तीन प्रकार विचार करे नी यह उत्पाद व्यय धोत्र्यप है। मामय पयायकि पलटनेसे उत्पत्ति विनामा करते हुए भी अपने स्वभावम अविनाशी है, अन्यथा यह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक चारित्ररूप है । चार प्रकार विचार करे तो यह सम्बन्दीन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकृचारित्र व सम्यकलाप, इन चार आराधनाम्बझप है या यह अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख. अनंत त्रीर्य चार अनंत चतुट्य स्वरूप है । या यह सुम्ब, मत्ता, चतन्य, बोध चार भाव प्राणोंका धाी है । या यह आत्मा अपने दृश्य. क्षेत्र काल, भात्रका स्वामी है । पांच प्रकार विचार करे नो यह अनंत दर्शन. अनंत ज्ञान, क्षायिक सम्यक्त, भाविक चारित्र नथा अनंत चीय म्बका है या इसम औपशमिक, श्योपशमिक, आयिक, औदायिक व पारिणामिक पांच भात्रोंमें परिणमनकी शक्ति है या यह आत्मा अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय, साधु पांच परमठो पद धारी है या यह आत्मा नारक, पशु, देव, मनुष्य, सिद्ध गनि इन पांच गतियों में जानेकी शक्ति रखता है । छःप्रकार विचार करें तो यह अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य, अनंत सुख, आयिक सम्यक्त, क्षायिक चारित्र वा गुण स्वरूप है या पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर ऊपर नीचे छः दिशा
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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