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________________ २२६ ] यांगसार टीका । ( ४ ) अनित्य स्वभाव - अपनी २ पर्यायोंके बदलने की अपेक्षा सब द्रव्य क्षणिक व नाशवंत हैं । (५) एकस्थ भाव - सच द्रव्य अनेक गुण पर्यायोंमें एक अखण्ड आधाररूप हैं । ( ६ ) अनेक स्वमाव- सब द्रव्य अनेक स्वभावोंको रखनेसे अनेकरूप हैं । (७) मेद स्वभाव -- गुणगुणीमें संज्ञा लक्षणादिके भेद रखजैसे भेद स्वभावी हैं । ( ८ ) अभेद स्वभाव -- सर्व द्रव्योंको गुण स्वभाव द्रव्योंमें सर्वांग अखण्ड रहते हैं। एक एक ही प्रदेशमें सर्व गुण होते हैं इससे अभेद स्वभाववान है । ( ९ ) भव्य स्वभाव -- सर्व ही द्रव्य अपने स्वभाव के भीतर ही परिणमन करनेकी योग्यता रखते हैं | (१०) अभव्य स्वभाव - सर्व ही द्रव्य पर द्रव्यके स्वभावरूप कभी नहीं हो सक्ते । ( ११ ) परम स्वभाव - सर्व हो द्रव्य शुद्ध पारिणामिक भावके धारी हैं। उन सामान्य गुण व स्वभावकी अपेक्षा जीवादि छड़ों द्रव्य समान हैं | परन्तु विशेष गुणोंकी अपेक्षा उनमें अन्तर है। अमृतक गुणकी अपेक्षा पुगलको छोड़कर पांच द्रव्य समान है। पुद्गलमें स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण ये विशेष असाधारण गुण हैं। धर्मद्रव्यमें जीव पुट्रलको गमनका कारण होना, अधर्म द्रव्यमें जीव पुट्रलकी स्थितिको कारण होना विशेष गुण है । आकाशमें सर्वको अवकाश देनेका विशेष गुण है. । . कालमें सर्वको बतानेका व परिणमनमें सहाई होनेका विशेष
SR No.090549
Book TitleYogasara Tika
Original Sutra AuthorYogindudev
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Yoga, & Spiritual
File Size6 MB
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