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श्री योगीन्द्रचन्द्राचार्य कृतयोगसार टीका।
मोका झान दज्ञ सुख वीर्यमय, परमातम सशरीर । अहेत वक्ता आप्त नम, पहु, भवदधितीरः ॥६॥ सिद्ध शुद्ध अशरीर प्रभू, वीतराग विज्ञान । नित्य मगन निज रूपमें, वंदई सुखकी खान ॥२॥
आचारज मुनिराजघर, दीक्षा शिक्षा देत। . शिव-मग नेता शांतिमय, चंद भाव समेत ॥ ३ ॥ श्रुतधर गुणधर धर्मधर, उपाध्याय हत भार । ज्ञान दान कतार मुनि, नमहु समामृत धार ॥ ४॥ साधन निज आतम सदा, लीन ध्यानमें धीर । साधु अमङ्गल र क.र, हरह सकल भव पार ।। ५ ।। जिनवाणा सुखदायनी, सार नवकी खान । पढ़त धारणा करत ही, हाय पापकी हान ॥ ६॥ योगिचन्द्र मुनिराज कृत, योगसार सत ग्रन्ध | भाशमं टीका लिखें, चलूं स्थानुभव पन्थ ! H.
(ब. सीतल, बा० १३-२-३९,)
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