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________________ अतः प्रस्तुत 'यशस्तिलक' की 'यशस्तिलकदीपिका' नाम की भाषाटोका विशेष अध्ययन, मनन व अनुसन्धानपूर्वक लिखी गई है, नियोक आश्वास (५ आश्वास से ८ आश्वास ) सटिप्पण र कोश-सहित ( यश. पं०) प्रकाशित किये जा रहे हैं। इसमें मूलग्रन्थकार की आत्मा ज्यों की त्यों बनाये रखने का भरसक प्रयत्न किया गया है, शब्दशः सही अनुवाद किया गया है। कहानियों का भो शब्दशः अनुवाद हुआ है । साधारण संस्कृत पढ़े हुए सज्जन इसे पढ़कर मूलग्नन्थ लगा सकते हैं। हमने इसमें मु० सटी० व निष्टोफ प्रति का संस्कृत मूलपाठ ज्यों का त्यों प्रकाशित किया है, परन्तु जहाँपर मूलपाठ अशुद्ध व असम्बद्ध मुद्रित था, उसे अन्य ह. लि० सटि० प्रतियों के आधार से मूल में ही सुधार दिया है, जिसका तत् तत् स्थलों पर टिप्पणी में उल्लेख कर दिया है और साथ हो ह. लि. प्रतियों के पाठान्तर भी टिप्पणी में दिये गए हैं। इसी प्रकार जिस श्लोक या गद्य में कोई शब्द था पद अशुद्ध था, उसे साधार संशोधित व परिवर्तित करके टिप्पणी में संकेत कर दिया है। हमने स्वयं वाराणसी में ठहरकर इसके प्रूफ संशोधन किये हैं, अत: इसका प्रकाशन भी शुद्ध हुआ है, परन्तु कतिपय स्थलों पर दृष्टिदोष से और कतिपय स्थलों पर प्रेस को असावधानी से कुछ अशुद्धियाँ ( रेफ व मात्रा का कट जाना-आदि ) रह गई है, उसके लिए पाठक महानुभाव क्षमा करते हुए और अन्त में प्रका. शित हुए शुद्धि-पत्र से संशोधन करते हुए अनुगृहीत करेंगे ऐसी आशा है।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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