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अष्टम माश्वासः
मस्यायमर्यः-सान्ति संतापयन्ति दुर्गतिसनसंपादनेनारमानमिति कषायाः' शोधावयः। अथवा यथा विशुद्धस्य पराममोहाय माया काम , ता शिरगामनो मलिनस्वहेतुत्वात्मकाया इव कषायाः । तत्र स्वपरापराधाम्यामात्मेतरयोरपायोपायानुष्ठाममाशुभपरिणामअननं या गोषः। विद्याविज्ञानश्चर्याधिभिः पूज्यपूजाव्यत्तिकमहेतुरहंकारो पुक्तिवर्शनेऽपि बुरामहापरित्यागो वा मानः । ममोबाणकाक्रियाणामयाथातथ्यारपरवसनाभिप्रायेण प्रभुतिः यातिपूनालाभाभिवेशान वा माया ! चेतनाचेततेषु वस्तुषु विसस्य महान्मभेद भाषस्तभिवृद्धिविमाशयोमहासंलोषोऽसंतोपो वा लोभः ।
प्रतों का पालन करना इसे संयमी आचार्यों ने संयम कहा है, यह संयम धर्म शाश्वत' कल्याण-प्राप्ति के इच्छुक ( मोक्षाभिलाषी ) साधुजनों के होता है ।। ४६७ ।।
[ अब इसका स्पष्ट विवेचन करते हैं-]
जो आस्मा को दुर्गति में लेजाकर दुःखित करती हैं, उन्हें ( क्रोधादि को ) कषाय कहते हैं । अथया जैसे वटवृक्ष-आदि के कसैले रस विशुद्ध वस्तु को कलुषित ( मलिन) करनेवाले हैं वैसे ही क्रोधादि कषाय भी विशुद्ध आत्मा को कलुषित ( मलिन ) करने में कारण हैं। अतः कसैले रस-सरीखी होने के कारण इन्हें कषाय कहते हैं । वे कषाय चार प्रकार की है-क्रोध, मान, माया व लोभ ।
. क्रोध-अपने या दूसरों के अपराध से अपना या दूसरों का नाश ( घात ) होना या नाश करना क्रोष है, अथवा अशुभभावों का उत्पन्न होना क्रोध है | मान-विद्या, विज्ञान व ऐश्वर्य-आदि के घमण्ड में आकर पूज्य पुरुषों की पूजा का उल्लङ्घन करना, अर्थात्-उनका आदर-सत्कार न करना मान है । अथवा युक्ति दिखा देनेपर भी अपना दुराग्रह नहीं छोड़ना मान है।
माया-दूसरों को धोखा देने के अभिप्राय से अथवा अपत्नी कोति, आदर-सत्कार और धनादि की प्राप्ति के अभिप्राय से मन, वचन व काम की कुटिल प्रवृत्ति करना माया है ।
लोभ-चेतन स्त्री पुत्रादिक में और अचेतन घन व धान्यादि पदार्थों में 'ये मेरे है इसप्रकार को चित्त में उत्पन्न हुई विशेष तृष्णा को लोभ कहते हैं । अथवा इन पदार्थों की वृद्धि होने पर जो विशेष सन्तोष होता है और इनके विनाश होने पर जो महान असन्तोष होता है उसे लोभ कहते हैं ।
कपायों के मेद इसप्रकार ये चार कषाय हैं। इनमें से प्रत्येक को चार-चार अवस्थाएं हैं-अनन्तानुबन्धिक्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण कोष, मान, माया, लोम और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ ।
१. तथा चाह श्रीपूज्यपादः-'कषाया: कोधमानमायालोमाः । तेषां चतसोश्वस्थाः अनन्नानबन्धिनोऽप्रत्या
ख्यानावरणा: प्रत्याख्यानावरणाः संज्वलनाश्चेति । अनन्तसंसारकारणस्थानिमध्यादर्शनमनन्तं तदनुबन्धिनोग्नन्तानबन्धिनः क्रोधमानमायालोभाः। यदमादेवाविरति मयमासंयमाख्यामल्पामपि मतुं न शक्नोति, ते देशप्रत्याख्यानमापवन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः 'क्रोधमानमायालाभाः । यदुदयाद्विरति कुरस्नां मयमाश्यां न शक्नोति का ते कृत्स्नं प्रत्याख्यानमावृण्वन्तः प्रत्याख्यानावरणाः क्रोवमानमापालोमाः । समेकी भावे वर्तते । मंयमेन सहावस्थानादको भूयज्यलन्ति संयमो वा ज्वलत्येषु सत्स्वपीति संज्वलना क्रोचमानमायालोमाः । सर्वार्थसिद्धि ०८-१५० २२७-२२८ । २. निग्रोधस्येमे नयनोराः परजाः ।