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________________ सप्तम आश्वासः I पोषणं करसवानां हिंसोपकरणकियाम् । वेशवतो न कुर्योत स्वकीयाधारचादीः ॥ १८७ ।। अन वण्डनिर्मोक्षादवश्यं देशलरे यतिः । 'सुहृत्तां सर्वभूतेषु स्वामित्वं २ प्रपद्यते ॥ १८८ ॥ वञ्चनारम्भहिसानामुपदेशात्प्रवर्तनम् । भाराधिक्याविकक्लेशों तृतीयगुणहानये ।। १८९ ।। ૐ૦૧ इत्युपालकाध्ययने गुणव्रतत्रमसूत्रणो नाम त्रयस्त्रिशत्तमः कल्पः । इति सफलताक*लोकचूडामणेः श्रीमधे मिदेव भगवतः शिष्येण सद्योनवद्यगद्यपद्य विद्यापरचक्रचतिशिखण्डमण्डनभचरणकमलेन्द्र श्रीसोमदेवसूरिणा विरचिते यशोवरमहाराजचरिते यशस्तिलका परनान्ति महाकाव्ये स रिचिन्तामणिर्नाम सप्तम आश्वासः । उनसे संसार की वृद्धि होती है ।। १८४-२८६ ॥ अपना आचार उत्तम बनाने की बुद्धियुक्त हुए देशव्रती श्रावक को हिंसक जीवों का पोषण नहीं करना चाहिए एवं हिंसा के उपकरणों को किसी के लिए नहीं देना चाहिए || १८७ ॥ अती श्रावक बन दण्डों का त्याग करने से अवश्य ही समस्त प्राणियों की मित्रता व उनका स्वामित्व प्राप्त करता है || १८८ || खोटा उपदेश देकर दूसरों को धोखा देना, आरम्भ और हिंसा का प्रवर्तन करना, शक्ति से अधिक बोझा लादना और अधिक कष्ट देना ये पांच कर्म अनर्थदंड व्रत को हानि पहुँचाते हैं, अर्थात् – इनसे अनर्थं दण्डव्रत सदोष हो जाता है, अतः अणुव्रती श्रावक को इन कामों से दूर रहना चाहिए ।। १८९ ।। इस प्रकार उपासकाध्ययन में तीन गुणव्रतों का निरूपण करनेवाला यह तेतीसवां कल्प पूर्ण हुआ । इस प्रकार समस्त तार्किक चक्रवर्तियों में चूडामणि ( शिरोरत्न या सर्वश्रेष्ठ ) श्रीमदाचार्य 'नेमिदेव' के शिष्य 'श्रीमत्सामदेवसूरि' द्वारा, जिसके चरणकमल तत्काल निर्दोष गद्य-पद्यविद्याधर-समूह के चक्रवतियों के मस्तकों के आभूषण हुए हैं, रचे हुए 'यशोवर महाराज चरित' में, जिसका दूसरा नाम 'प्रशस्तिलकचम्पू महाकाव्य' है, 'सच्चरित्र चिन्तामणि' नामका सप्तम आश्वास पूर्ण हुआ । १. सुहुत्ता मैत्री
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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