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________________ सप्तम आश्वासः अमात्यः--'समस्तमनोरथसमर्थनफयामार्ये बायें, तमीबितामृतनिकाय मजोरितोषितविकाय प तत्रमवत्येव प्रमसि ।। धात्री-अप किम् । तथाप्यपलाजममनोतिरिक्तप्रतिमानता तत्रभवतापि प्रतियतितष्यम् ।' इत्यभिधाय पतकात्यायिनीप्रतिकर्मा करतलामसमिशकलितसकलस्त्रंणधर्मा संस्तः परचिताकर्षणमात्र नक्षुश्चेतोडाववास्तुमि वस्तुभिश्च अप्तिचिरायाचरितोपचारा परिणाप्तप्रणयप्रसरावतारा च एकबा मुद्दा रहसीम प्रस्तुतकार्यघटना. समसीमं सा पुष्यकारतामुद्दिश्य इलोकमुबाहार्षीत् । स्त्रीषु पन्यान गङ्गध परमोगोपगापि पा । मणिमालेब सोल्लासं नियते मूनि शंभुना ॥१५६।।' भट्टिनो-(स्वगतम् । ) "इत्वरोजनाचरणहम्बनिर्माणाय प्रथमसूत्रपात इवाय घाश्योपोबरतः। सपा शाह नेयं तावदेतवातपरिपाकम् । (प्रकाशम् । ) आर्य, किमस्य सुभाषितस्य 'ऐदंपर्यम् ।। धात्री-परमसौभाग्यभागिनि भट्टिनि, जानासि एवास्य सुभाषितस्य फंपर्यम् २, यदि न बघटितहृदयासि । से आप भी पहिले ऐसे ही थे, इसलिए आपको पुत्र के जोबनरूपी अमृत के सिञ्चन के लिए शीघ्र प्रयत्न करना चाहिए।' मन्त्री-'देवो ! आप समस्त मनोरथों को सफल करने को कथा में स्मरण के योग्य हैं, अतः उसके जीवनरूपी अमृत के सिंचन के लिए और मेरी जीवन रक्षा के योग्य ज्ञान के लिए आग ही समर्थ हैं।' घाय-'यह तो ठीक है, परन्तु आप स्त्रीजनों के मानसिक ज्ञान को अपेक्षा अधिक बुद्धिशाली हैं अतः आपको भी प्रस्तुत कार्य में प्रयत्न करना चाहिए।' इतना कहकर धाय ने अधं वृद्धा स्त्री का वेष धारण किया और उसने समस्त स्त्रीजनों के उचित कर्तव्य हस्त पर खखे हुए आंवले को तरह स्पष्ट निश्चय किए | उसने दूसरों के चित्तको आकर्षण करने के लिए मन्त्र-सरीखे वचनों द्वारा और नेत्र-मुख ब' मानसिक सुख को स्थानीभूत वस्तुओं की भेटी द्वारा पद्मा को चिरकाल तक सेवा को । जिससे उसने अपने कार पद्मा को विस्तृत प्रेम की उत्पत्ति प्राप्त की। एक समय उसने एकान्त में पद्मा को लक्ष्य कारके हर्षपूर्वक ऐसा श्लोक पढ़ा, जो कि प्रसङ्ग में प्राप्त हुई कार्य-रचना को अनुकुल मर्यादा से युक्त था। ___ इस लोक को स्त्रियों में गङ्गा हो धन्य है, जो दूसरों के समीप भाग-दान के लिए जाती है. फिर भी वह शहरजी द्वारा मणियों की माला की तरह उल्लास-सहित मस्तक पर धारण का जाती है ।। १५६॥ इसे सुनकर पना ने अपने मन में विचार किया, यह वाक्य के अवतारणों का क्रम कलटा स्त्रीजन. के आचरणरूपी महल के निर्माण करने के लिए प्रथम सूत्रपात-सरीखा है । फिर भी इसने जो कुछ माहा है, उसके अभिप्राय का सार जान लेना चाहिए ।' पश्चात् पद्मा ने स्पष्ट कहा-'माता! आपके इन सुभापित का क्या रहस्य है ?' १. स्वमेव । २. समर्था। ३. एवमेतन् । ४. अधिकायुद्ध्या । ५. अपंजारती । ६. पचनः । ७. पास्तु गृहम् । ८. कुन्टा। ९. 'संग्रहवायचे अवतारणक्रमः, उपन्यानस्तु वाङ्मखं, उपोट्रातः उबाहारः' टि० ख०, 'अवतारणक्रमः' इति टि० च० तथा यश. पं० अपि । १०. अभिप्रायोदयं मूत्रपातसदृशम् । ११. रहस्य । १२. रहस्म ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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