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________________ षष्ठ आश्वासः २९३ इस्युपासकाध्ययने रत्नत्रयस्वरूपनिरूपणो नामकविंशतितमः कल्पः । इति सकलताकिकलोकचूडामणे श्रीमनेमिदेवभगवतः शिष्येण सधोग्नवद्यगणपषिद्यापरचायत्रातिशिखण्डमडमोभववरणकमलेन श्रीसोमदेवमूरिणा विरचिते यशोषरमहाराजबारिसे यशस्सिलफापरनाम्न्यपवर्गमार्गमहोदयो नाम षष्ठ आश्वास: सहन करते हुए पाप क्रियाओं का त्याग करना चाहिए और दान-पूजा-आदि धार्मिक कर्तव्यों का आश्रय धन है। अर्थात्--न्याय से संचित किये हुए घन को पात्रदान-आदि धार्मिक कार्यों में लगाना चाहिए ॥ २७ ॥ इस प्रकार उपासकाध्ययन में रत्नत्रय का स्वरूप बतलानेवाला इक्कीसवां कलप समाप्त हुआ । इस प्रकार समस्त तार्किक-समूह में चूड़ामणि (मर्वश्रेष्ठ) श्रीमदाचार्य 'नेमिदेव' के शिष्य श्रीमन्मोमदेव सूरि द्वारा, जिसके चरणकमल तत्काल निर्दोष गद्य-पद्य विद्याधरों के चक्रवतियों के मस्तकों के आभूषण हुए हैं, रचे हुए 'यशोधरमहाराजचरित' में, जिसका दूसरा नाम 'यशस्तिलकचम्पू' महाकाब्य है, मोक्षमार्ग का उदयशाली यह षष्ठ आश्वास समाप्त हुआ। इसप्रकार दार्शनिक-चूड़ामणि श्रीमदम्बादास शास्त्री व श्रीमत्पूज्य आध्यात्मिक सन्त श्री १०५ क्षुल्लक गणेश प्रसाद जो वर्णी न्यायाचार्य के प्रधान शिष्य, नीतिबाक्यामृत के अनुसन्धान पूर्वक भाषा-टीकाकार, सम्पादक व प्रकाशक, जैनन्यायतीर्थ, प्राचीनन्यायतीर्थ, काव्यतीर्थ, आयुर्वेद-विशारद, एवं महोपदेशक-आदि अनेक उपाधि-विभूषित, सागर निवासी परवार जैन जातीय श्रीमत्सुन्दरलाल शास्त्री द्वारा रची हुई 'यशस्तिलकचम्पू महाकाव्य' की 'यशस्तिलक-दीपिका' नाम की भाषाटीफा में मोक्षमार्ग का उदयशाली यह षष्ठ आश्वास पूर्ण हुआ।
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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