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________________ षष्ठ आश्वास भास्करवेव मुख्ये नाम्बरधरचक्रेण क्रमशः कृताभ्युत्थानकियः सश्रममागमनाय 'तनमापृष्टः स्पष्टमाचष्ट । १० तदनन्तरमानन्ददुन्दुमिनादोसास हवे 'लितमुख र मुख मण्डल सामविकालंकारसारसज्जित गजवाजिविमानगमनप्रचलत्कर्ण कुण्ड, अनेकानणुमणिकिणीजालजटिल दुकूलकल्पि तथा लिव' जराजिविराजितभुजपञ्जरः * करिमकरसिंहशार्दूलशरभकुम्भी "रशफ" रशकु " मलेश्वरपुरःसराकार पतासा संताप स्तिमितकरः, मानस्तम्भस्तूपतोरणमणिवितानव पंणसित पत्र वा मरथिरों" चमचन्द्र भद्रकुम्भसंभृतशः १४ अनुच्छदेव "च्छत्यादि "छिन कर्णो रथस्पग्वनद्विपरनर निकीर्णसेन्यनिचयः समयघण्टा पटु पटकर "टामृश का हल त्रिविता लझल्ल रोमेरिभावितगीत संगताङ्गना भोगसुभगसंचार 'कुजवामनकिरात कितवनटन कम दिया जीवन विनोदानन्त्रितदिविजमनस्कारः, स २२ रखे चरसहच रोहस्त विन्यस्तस्वस्तिक प्रदीप पनि उपप्रभूतिविश्चित्राचं नोपकरणरमणीयप्रसरः पिष्टा तक पटवासप्रसूनोपहा 5 २६९ ני जब तुझ धर्म-माता की चिन्ता करने वाला मेरे सरीखा पुत्र वर्तमान है तब निश्चय से अर्हन्त-पूजा में कोई विघ्न नहीं होगा । अतः बाप पूर्व की तरह निश्चिन्त होकर अपने महलों में जाकर बैठिए । इसके बाद वज्रकुमार मुनि आकाशगामिनी विद्या से विद्याधर भास्करदेव के नगर में पहुॅचे। महामुनि होने से समस्त बान्धवों में बृहस्पति- सरीखे महाविद्वान् होने से भास्करदेव की प्रधानता वाले समस्त विद्याधर समूह ने इनका अच्छा सत्कारादि किया और विनयपूर्वक उनके आने का कारण पूछा । वज्रकुमार ने 'सब समाचार स्पष्ट रूप से कहा, अर्थात् — उविला महादेवी का रथ निकालने के लिए सैनिक सहायता मांगी। इसके बाद मथुरापुरी के नागरिकों में वस्त्रकुमार मुनि को महान इक्यासी लड़ों वाले हारों से सघन पालकी, रथ, हाथी, घोड़े व पैदल सैनिकों से भरे हुए सैन्य समूहों के साथ एवं पूजा के योग्य उपकरण-समूह को धारण करने वाले दूसरे विद्याधरों के साथ आकाश से उतरे हुए देखा। जिनके ( सैन्य-समूहों के ) मुखमण्डल आनन्ददायक दुन्दुभि बाजों को ध्वनि से उत्कट हुए सिंघनाद को ध्वनि से मुखरित थे। जिनके कानों के कुण्डल यात्रोचित श्रेष्ठ आभूषणों से सजाए हुए हाथी, घोड़ों व विमानों द्वारा गमन करने से कम्पित हो रहे थे । जिनके हाथ अनेक महामणियों की क्षुद्र घण्टियों के समूह से ग्रथित हुए रेशमी वस्त्रों से रचों हुई लघु ध्वजाओं की श्रेणी से सुशोभित थे। जिनके हाथ, हाथी, मकर, शेर, शार्दूल, अष्टापद, नाका, मछली व गरुड़ आदि को मुख्य चिह्नों वाली पताकाओं की श्रेणी से निश्चल हो रहे थे। जिनके हाथ मानस्तम्भ, स्तुप, तोरण, मणिसमूह, दर्पण, श्वेतच्छत्र, चमर, सूर्य, चन्द्रमा, और पूर्ण कुम्भ को धारण किए हुए थे। जिनका (विद्याधरों का ) गमन जयघण्टा से सहित महाभेरी, करटा (वाद्य विशेष ), मृदङ्ग, राख, काहल ( बड़ा ढोल ), त्रिविल ( वाद्य विशेष ), ताल, झल्लरी, हुडुक्का ( वाद्यविशेष ), भम्भा आदि वादिनों के अनुकूल गान करने वाली कमनीय विद्यारियों के शरीर से मनोश है। जिन्होंने देवताओं के मन, कुब्ज, वोना, किरात, जुआरी, नट, नर्तक, स्तुति पाठक- वन्दियों च भाटों के विनोदों से आनन्दित किये हैं। जिनके गमन, कोड़ा करने वाली विद्यारियों के हाथों पर रक्खे हुए स्वस्तिक ( सौंधिया), दोपक, धूप-घट आदि विचित्र पूजाओं के १. कारणं । २, हस्तमुखसंयोगजी ध्वनिः । ३. यात्रोचि । ४. मिश्र । ५ रचित । ६. पुष्वज । ७ हस्ते । ८. जलचर । ९. मत्स्य । १०. गरूड़ । ११. 'कम्पितहस्ते' टि० ०? 'संपितहस्ते' टि० ० । १२. सूर्य । १३. पूर्णकुम्भ 1 १४. हस्ते । १५. एकाशीति यष्टिको हारः । १६. निरन्तर । १७. शिविका । १८. कर । १९. हुडुक्काः । २०. शरीर । २१. किरातः स्यादल्पतनी । २२. क्रीड । २३. घट । २४ नामचूर्ण |
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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