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हम्नगत रहे, क्योंकि मैं पत्रकूट चैत्यालय को उपवन में कामदेव की पूजा के लिए जाऊँगा, तुम्हें बहो पा युद्ध-बीड़ा के लि।ा ग पक्षी जोई को दिखाना चाहिए।' जैमी भाना बहकर पण्डकर्मा द्वारा पिमरा के साथ प्रस्थान किया जाना।
१५० इंगके बाद चश्वकर्मा का पिजर के साथ इसी उद्यान में पहुंचना, एवं १ माथियों ( शनसर्वज्ञ नामक विष्य भक्त विद्वान-आदि ) का भी वहां पहुंचना, यहां पर उनके द्वारा प्रशोक वृक्ष के मूल में विराजमान हुए सुदत्ताचार्य का देखा जाना, पश्चान उनके ममन, शकुन मज नामके विद्वान द्वारा सांख्यदयान का समर्थन निया जाना धमध्वज नाम के विद्वान द्वारा मोगांसक मत की स्थापना की जाना, हरप्रबोष द्वारा दक्षिणमार्ग ना बाममार्ग के सिद्धानों का समर्थन किया जाना, और मुगन कोनि द्वारा बौद्ध दर्शन की स्थापना की आना, एवं चण्डकर्मा द्वारा चार्वाक मत का मामर्षन किया जाना, परवान आचार्य सुदत्त पारा उन सभी दानिकों को मान्यता का अकाटय युक्तियों द्वारा संडन किया जागा पोर महिमा को ही धर्म का मग बताना और अपने पक्ष का समर्थन करते हुए मुदनाचार्य द्वाग उन मामी के पर्व भवों का वर्णन किया जाना, जिसके फलस्वरूप उसे यह निश्चय होना कि 'हमने यशोधर राजा व चन्द्रमनि की पर्याय में कुलदेवो के लिए आटे के मर्गे की बलि चढाई थी, जिससे हमें इस भवन में घूमना पहा, इत्यादि
पश्चात् गालोम नि महाराज द्वारा कुशुमानली महागनी के लिए अपनी शरददेधिता की काशलना प्राप्त करने के लिए भेदने में गमथं बाग छोड़ा जाना, जिससे दोनों मुर्गा-मुर्गी का श्राहत होकर मर जाना और धर्म के माहात्म्य से दोगों का मगर योनि जमलेगा. वो बार मति कुमार की रानी कमुमा पनि के गर्भ से यमज ( जोड़ा) भाई-बहन के रुप में उत्पन्न होना, इसी प्रसंग में गर्भवती कुसुमात्र लि रानी का कार्णन होना भोर रानी द्वारा अपने दोहले राजा के लिए प्रकट किये जाना और यशोमति महाराज द्वारा अधिकारियों के लिए उक्त कार्य सम्पन्न करने की प्रेरणा की जाना पचान उनका नाम 'यशस्तिलक और मदनमति रखा जाना और माता के दोगना के अधीन अभयाचि और अभय गति नाम रखा जाना, प्रसंगवश यणम्निनक और मदनमनि के कमार काल का निरूपगा किया जाना
एक दिन योमति महाराज का शिकार बोलने के लिए जाना और उनके द्वारा महसट जिनालय के उद्यान में श्री सुदप्ताचार्य का देखा जागा, अजमार नामक विदुषक द्वारा यह कहा जाना कि राजन् ! 'इस मुनि के दर्शन में माज शिकार मिलना असम्भव है. इसे सुनकर राजा या क्षध हो जाना । उसी अवसर पर सदनाचार्य को वदना के लिए बाए हुग कल्याण मित्र नाम के वणिक स्वामी द्वारा यशोधर महाराज से कहा जाना-हे राजन् । असगय में आपका मुख शोक से म्लान क्यों हो रहा है ? विदूषक पुत्र अजमार--हे वणिक स्वामी इस अमङ्गलीभून नग्न के देखने से' ।
कल्याणमित्र द्वारा यह कहा जाना-'राजन् ! ऐसा मत साची, क्योंकि यह भगवान् निस्सन्देह पूर्व में लिङ्ग देश के राजा थे, तुम्हारे पिता से इनका बंशानुगत पूज्यता का मंबंध पा । इसने व्यभिचारिणी स्त्री मरोग्यी म्वयं आई हई राज्यलक्ष्मी को चन्चल स्त्री-सी जानकर तिरस्कृत किया और त्रिलोक पूज्य तपश्चर्या में स्थित है, भारः इनकी अवज्ञा करना उचित नहीं है । पुनः नग्नता के समर्थक अनेक प्रमाण दिये तब यपोमानि कुमार द्वारा कल्याण मित्र के साथ मुनि राज को नमस्कार किया जाना और मुनिराज द्वारा उरो शुभाशीर्वाद दी जाना
यशोमति कुमार को अपनी दुर्भावना पर पश्चाताप होना, और उसके मन में यह विचार आना कि 'अपने शिर कमल से प्रस्तुत भगवान के चरणों की पूजा करनी ही इस पाग का प्रायश्चित्त है' प्रस्तुत आचार्ग द्वारा राजा के मन की बात जानकर उसे रोका जाना इससे प्रभावित हुए यशोमति कुमार द्वारा उन्हें अतीन्द्रियदर्शो जानकर अपने दादा यशोध