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मङ्गलाचरण
मुनिकुमार ने कहा-मुर्गे के बघरूपी पाप-युक्त अभिप्राय से यशोधर का ऐसे भुवन पर्वत के समीपवर्ती गदी तट पर वर्तमान वृक्ष पर गोर-कुल में मोर होना, प्रसङ्गवश सुवेन पर्वत का, वृक्ष का एवं मयुर कुल-का सरस वर्णन
__ पश्चात् पिकारी 'गजाशल्यक' द्वारा मयूर का पिंजरे में बान्दीकृत किया जाकर, उज्जयिनी नगरी में यशोमति महाराज के लिए मेंट किया जाना और भाग्योदय से मोर के लिए जातिस्मरण प्रकाट होना।
पश्चात् राजमाता चन्द्रमति का विन्ध्याचल पर्वत की दक्षिण दिशा में वर्तमान “करहाट' नाम के जनपद में गोपन' नाम के गोकुल ( गोशाला ) पति के गृह पर कुत्तों के कुल में कुत्ता होना । इमी प्रसंग में करहाट देश के ग्रामों की प्रौर गोकुल की छटा का सरस वर्णन एवं प्रस्तुत कुत्ता 'गोधन' नाम के गोकुलस्वामी द्वारा उज्जयिनी नगरी में यशोमलि महाराज के लिए मेंट किया जाना ।
पश्चात् चन्द्रमति के जीव नुतं द्वारा मार का प्रागान्त किया जाना, उसे जानकर यशोमनि महाराज द्वारा फुत्ते का प्राणान्त किया जाना । इसी प्रसंग में मयूर व कुत्ते के मरण से यशोमति महाराज का शोकाकुल होकर इनकी पूर्वजों-जैसी क्रियाएं किये जाने का आदेश देना ।
इसके बाद यशोधर वा जीव मयूर का मरकर 'शिशिताण्डवमण्डन' भाग के वन में सेहिनी के गर्म में आकर सेही होना, प्रमी प्रसंग में प्रस्तुत वन का सरल वर्णन और चन्द्रमति के जीव कुत्ते का भरकर सर्प होना, पश्चात् मेही द्वारा सपं का मक्षण किया जाना, प्रसंगवमा सर्प का वर्णन पुन: सर्प द्वारा सेहो का साया जाना । ११७
__उसके पश्चात् यशोधर के जीव सही का सिप्रा नदी के जाल में महान अजगर-सरीखी देह दाना 'गोहितान' नाम का मण्छ होना और चन्द्रमति के जीन काले सांप का सिप्रा नदी के घगाष जलाशय में "पिाशुमार' नाम का मचानक मकर होना, इसी प्रसंग में सिमा नदी का पोर उसके जल का तथा जाल-क्रीड़ा करने वालो नागरिक कमनीय कामिनियों का सरस वर्णन
११८ इसके बाद उस नागरिक स्त्रियो की जलक्रीड़ा के अवसर पर उस 'शिशुमार' नाम के मकर द्वारा, जो कि मुझ 'रोहिताक्ष' नाम के भन्छ को पकड़कर खाने के निमित्त लोटा हुआ था, 'मदन मजरिवा' नाम को स्त्री पकड़ी आना, जो कि ययामिनि महाराज की कुसुगावानी नाम की रानी की दासी थी, इससे कपिरा हाए यशोमनि महाराज द्वारा मगारों का समूह बुलाकर सगस्त जलचर दुष्ट जन्नुमा के विनाश के लिए आदेश दिया जाना, जिससे शिशुमार मकर को कण्ठनाल में लोई का ब्रा कोटा पड़ना और रोहिताक्ष मच्छ के ऊपर मयाजाल पड़ना, पश्चात् मछुवारों द्वारा लाये हुये दोनों को देखकर यशोमति महाराज द्वारा पितरों के सन्तपंण के लिए ब्राह्मण-समूह को सदावर्त शाला के रसोइए के लिए ममर्पण किया जाना इस तरह दोनों का प्राणान्त होना।
१२३ पूनः चन्द्रमति के जीव मकार का भौर यपोषर के जीव रोहिताक्ष गच्छ का, उज्जयिनी के निकटवर्ती 'काहि नाम के ग्राम में मेड़ों के भुण्ड के मध्य क्रममाः बकारी व बकरा होना, जबान होने पर एक दिन योघर के जीव बकरे द्वारा अपनी माता चन्द्रमति के जीव बकरी के साथ कामसेवन किया जाना भीर तत्काल मेढ़ी के समुह के स्वामी द्वारा विशेष तीधरण सींगों से बकरे के मर्मस्थानों में निरुर प्रहार किया जागा, एवं जराके पापात में मरकर उसका उसी बकरी के गर्भ में प्राकर बकरा होना ।
१२४ इसी अवसर पर यशोमप्ति महाराज का शिकार खेलने के लिये अन में जाता, इसी प्रसंग में शिकारी यगोमति महाराज का वर्णन होना, परन्तु कोई शिकार न मिलने से मिगण पौर बुद्ध हुए उसके द्वारा बनरिया, मेढ़ा समूह,