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________________ ( २६ ) है, अतः मे क्या वियों को छोड़कर उस उपलक्ष्मी को भो ? मह भी उचित नहीं; क्योंकि स्त्रीजन के बिना राज्यलक्ष्मी वन सरीखी निस्सार है। ३१ ३२ से नैतिक सिद्धान्त सोने जाना और 'स्त्रियों अपनी धमाका द्वारा समर्थन किया जाना पूर्वकालीन अपने मन की रामकता का और विचार किया जाना एवं गमिष्ठ विधि को उलाहना दिया जाना आदि ३६ पुनः यशोधर महाराज द्वारा तपोवन के पति प्रस्थान करने के लिये यह उपाय सोचा जाता कि 'यदि यह आज की रात्रि निविन व्यतीत हो जायगी उस समय में 'सर' नाम के सभामण्डप में बैठकर अपनी माता चन्द्रमती देवी समस्त सेवक को बुलाकर ऐसा कूटकट ( मायाचार ) करूँगा, जो कि अद्वितीय अनुपदि व पूर्व में अनुभव में नहीं आया हुआ एवं जो अनुचित होने पर भी समस्त विघ्नों को निवारण करने वाला है, इत्यादि प्रस यज्ञ प्रभात बेलाका मरस वर्णन... व -समूह ४ पुनः यशोधर महाराज द्वारा स्त्रियों से विरत करने प्रकृति नहीं छोड़नी इनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं है' इस बात का पञ्चाद उक्त घटना के कारण यशोधर महाराज द्वारा वर्तमान कालीन चिस की निमंत्रना आदि का वैराग्य-पूर्ण विचार किया जाना... तदनन्तर मेरे द्वारा 'अखिलजनाचसर' नाम के समानण्डप में पहुँचना, वहाँ पर जब समस्त सेवकजन एकत्रित होकर यथास्थान पर स्थिति कर चुका था एवं शास्त्र वाचक ( पुरोहित ) प्रवृत्त हो चुका था। इसी प्रकार जब तक मेरे द्वारा चन्द्रमति माता के प्रति लेख भेरने की इच्छा से 'मनोरथवाचि' नाम के मंत्री का मुख देखा जा रहा था तब तक मेरे द्वारा अत्यन्त उष्ठापूर्वक स्वयं जाती हुई चन्द्रमति माना का देखा जाना गया उसने सन्मुख जाता और उसे लाकर मान सिंहासन पीठ पर बैठाई जाना, एवं उसकी आज्ञा से मेरा भी अपने सिंहासन पर बैठना । ४५ पन्चात् चन्द्रमति माता द्वारा मुझे आशीर्वाद दिया जाना पथों का पढ़ा जाना और उसके लिए मेरे द्वारा ( गणांवर महाराज द्वारा एवं उसके लिए वनुष समानची द्वारा पारितोषिक दिया जाना । इसी अवसर पर कथावाचक द्वारा सुभाषिता पारितोषिक दिये जाने का आदेश दिया जान इसके बाद चन्द्रमति माना द्वारा मन में ऐसा सोचा जाना कि मेरे पुत्र का मन सांसारिक भोगों से विरक्त करने वाली कैसे? ऐसा मालूम पड़ता है कि महादेवी के गृह पर प्राप्त हुए मेरे पुत्र का कोई वैराग्य का कारण अद हुआ है ? क्योंकि मेरे पुत्र ने इसे विशेष स्वाधीनता दे दी है जो कि तलवार की धारनरोपी पति के हृदय को विदा किये बिना विश्राम नहीं लेती। मुझसे प्रियंवदा ने कहा था कि आपकी पुत्रवधू की दृष्टि उम 'अ' नाम के निःकृष्ट महावत से स्नेह करने में तत्पर-सी मालूम पड़ती है... 1 ४७ पश्चात् मति माता द्वारा मुझसे पूछा जाना हे पुत्र इस युवावस्था में तेरा मन धर्मकाओं में क्यों संलग्न है ? तेरी मुख-कान्ति म्लान क्यों है ? तेरा शरीर कान्ति- होन क्या है ? तुम सिहासन पर निश्चल होकर क्यों नहीं टते? इसे सुनकर यशोधर महाराज द्वारा माता को अपने द्वारा कलिक स्वप्न-वृतान्त सुनाया जाना... ४८ पश्चात् माता द्वारा भाशीर्वाद देकर मुझे समझाया जाना और मेरा स्वप्न-दर्शन असत्य साबित करने के लिए शन्तमाला उपस्थिति की जाकर मुझे समझाया जाना है ! तुम एम समस्त राज्यादि वैभव को छोड़कर किस अभिलाषा से तपश्चरण करते हो? यह तगश्वर स्वर्ग व मोक्ष-निमिल नहीं है क्या प्रत्यक्ष से परोक्ष ४९ विषयगे महान होता है ?
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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