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________________ पञ्चम आश्वांसः A यत्र मलमलकामिनी वरमवार चलद्वि कम कजकिञ्जल्कवुज पिजरतरङ्गम् आवंदाघाट पेटपर्यटन मानकिनीपुटपटलान्तरसम् उत्तररूत रतरस्कारण्डी ब्रण्डण्ड काण्डखण्ड मानकरण्डदलोत्लसत्करूलोलम्, अनेकमहिलाका कुटुम्बिनीकवम्बचुग्ध्य मानजम्बालजालन दिलजलवेवतादोलम्, अनवरतर तिफलमोदमेदुरमिथुन वरपतङ्गपक्षचापलोच्छलच्छोकरा सारसिध्य मानतीरतरुनिकरण, अन्योन्यापघनघनापट्ट कुटितकुम्मोरभय भ्राम्यत्क कुमकुटाकारमुखरम् अवाचाटवकोटचेष्टित चकितफ मलमूलनिलौ यमानपोताषानम् अम्बुसहकुहरविदवहारविनितवैखानस कुसुमविधानम् वीनंदमंदी चितुमुलक लिकोलाहला वलोकमूक मूककलोकम्, उम्मतमकरकरास्फालनो तालनहरिको तालि तारविश्व कन्चरद्ववन्मकरत्वमिन्दु चन्द्रकाषचयञ्चतच श्वरीकमेकवी चिकन कम् उद्दामपिवशन वश्यमान मृणालिनीसकलसारप्रसरम् अच्छकन्पापाठीन पृष्ठपोठी कुण्ड डण्डीर पिण्डशिखण्डितत टिनोनिकटकर्करम् उपान्तसँकतोल्लोलबालोविहारखाचाल बारलम्, अधूरजकुजकुजकुलायकोस्कुररकूजितबलम् अमृतस्रोत देव सुतस्पर्शावालम्, पति- सनाया ( सुगन्धित्रस्तु खरीदने वाले गृहस्थों से सहित ) होती है और जिसके द्वारा पुष्प - सहित तरङ्गरूपी कलशों के अभिषेक से नदी के समीपवर्ती गृहों में आश्रित हुए ब्राह्मण हर्षित किये गये हैं । प्रसङ्गानुवाद -- जिस सिप्रा नदी में जलक्रीड़ा के अवसरों पर नगर की स्त्री समूह से मोतियों के चूर्णसमूह सरीखा स्वच्छ जल वैसा उत्कलिकाओं ( तरङ्गों से मलिन किया जाता है रही= स्त्री का हृदय उत्कलिकाओं ( उत्कण्ठाओं ) से अनच्छ ( व्याकुलित ) होता है । कैसा जल मलिन क्रिया जाता है ? जिसकी तरङ्गे मदको प्राप्त हुई हंसिनियों के चरण- संचारों से हिलते हुए विकसित कमलों को केसर श्रेणी से पीत-रक्त हुई हैं। जिसमें ऐसी कमलिनियों के पुटसमूहों का मध्य वर्तमान है, जो कि दोघंतर गर्व करनेवाली सारस श्रेणी के पर्यटन ( संचरण ) से हिलाई बुलाई जा रहीं थी । विशेष चञ्चल च तैरते हुए चकवा पक्षियों की चोंचोंरूपी वाणों द्वारा खंड-खंड किये जानेवाले कमल पत्तों के साथ जहाँपर तर उछलती हुई शोभायमान होरहीं हैं । जहाँपर जलदेवताओं के मूल बहुत से हंसविदोषों की कामिनियों के समूह द्वारा चोचों से छूए जा रहे शैवाल-समूहों से फर्बुरित ( रंग-विरङ्गे) हो रहे हैं । निरन्तर रतियुद्ध से उत्पन्न हुए हर्ष से स्नेह सहित चकवा चकवी पक्षियों के पलों की चपलता से ऊपर उछलते हुए जलबिन्दुओं को श्रेणी द्वारा जहाँपर तटवर्ती वृक्ष-समूह सींचे जा रहे हैं। जो परस्पर शरीरों की टक्कर से कुपित हुए मकरों के भय से भयभीत किये जानेवाले वालकुकुटों के अव्यक्त शब्दों (घाँध देने) से बाचालित हो रहा है । जहाँपर कमल-मूलों में प्रवेश करनेवाली क्षुद्र मछलियों का समूह मीनी बगुलों के व्यापारों से भयभीत हुआ हैं । कमलों के मध्य पर पर्यटन करनेवाले जलब्यालों ( ग्राह्नों) से जहाँपर तपस्वियों को कमल-ष्टन विधि विघ्न-युक्त की गई है । उरकट भद करनेवाले जलसप के रौद्रयुद्ध संबंधी कोलाहल के देखने से जहाँपर मंडकों का समूह मूक हो गया है । जिसमें तरङ्ग श्रेणी ऐसे भौरों द्वारा श्यामलित हुई है, जो कि विशेष मद को प्राप्त हुए जलहाथियों के शुण्डादण्डों के संचालन से विशेष वेग बाली तरङ्गों से कम्मित हुए कल-कोशों से झरते हुए मकरन्द - ( पुष्परस ) बिन्दुओं के चन्द्राकार मण्डल के संचय करने में चञ्चल हो रहे थे। जिसमें कमलिनियों के समस्त विस्तृत कन्द शक्तिशाली जलहाथियों के दाँतों से चावे जा रहे हैं । ( चट्टान सरीखे ) महान् कलुओं के फड़फड़ाने से कुपित होनेवाले महामच्छों को प्रशस्त पीठों पर लोट-पोट करती हुई प्रचण्ड फेनराशियों से जिसने नदियों के दोनों तट के समीपवर्ती पर्वत शिखर मुकुट वाले किये हैं। निकटवर्ती वालुकामय प्रदेशों पर वर्तमान चञ्चल तरङ्गों पर पर्यटन करने से जहाँपर हंसिनियाँ वाचालित हो रही हैं। जो निकटवर्ती वृक्षों के लतापिहित प्रदेशों
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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