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अपि च यत्र
यशस्तिलकचम्पूकाव्ये
प्रवणशरणागतोद्धरणकुलकीर्तयः सन्ति धर्मार्थकामेषु समनीतयः । सुकृतफलभूमयो प्रामविनिषेशिकाः, कामितामाप्तिविजितामरोद्देशकाः ॥ १५ ॥
सोपीयांश
भागमः प्रविभ्राध्य
भूयः ।
संख्यागमाविव विवापि रहन्ति कान्ताः कोकाः सरःसु कृतकूजितकण्ठपीठाः ॥ १६ ॥
तत्र भवत इव सकलगोमण्डलाधिपतेनाभिधानवसतेरस्ति खलु गोकुलविशालं श्रीशालं नाम बनधान्यषामाशमनेविष्टं गोष्ठम् । यत्क्वचिद्धि गलमण्डलवा लाकुलितवस्तवर्करकम् क्वचिद्गोपालपोलपम्पमानवृद्ध यु ष्णिकम्, क्वचि नृत्से क्षणक्ष रत्न धेनुदुग्धधाराधान्य मानघरापीठम्, नवचित्कालक्षेपकलशराशिविभाजन प्रीयमाणातिथिपेठम् क्वचित्थनविनियुतनिचिकीनिटिल निकट निक्षिप्यमाणवधिव भंक्षितप्रसवम् क्वचिद्दलितदामवासेरका कमासिशङ्कित शकृत्करिषुरमानापनिवेशपल्लवम् क्वचि तरुणतराभीरोर्णघनदुषणधीरघातधूष्यंमामरणरभस झोस संधुमित रक्ताक्ष कक्षम् क्वचि न्यायनापहरियूचयुद्धबाध्यमानत्रष्ठो हौ पक्षम् क्यचिद्बष्कयगोक्षीर तोक्ष्यमाणगुहगृहाब ग्रहणीगृहदेवताकुलम् क्वचिद्गोमिथुनपरिणयोत्फुल्लपल्लवस्यवासिनीजनोष्यार्यमाणमङ्गलम् क्वचिदभिन्यमन्यामध्य निविनत्य मानभवनमहणम्, क्वचित्मा
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भोग नहीं भोगते एवं भोग नष्ट करके धर्म व धन का संचय नहीं करते । एवं जो पुण्य के फलों (सुखों ) स्थान हैं तथा जिन्होंने अभिलषित फलों की प्राप्ति से स्वर्गलोक जीते हैं' ।। १५ ।।
जिस करहाट देश में --मज्जुल शब्द करनेवाले कण्ठपीठों से व्याप्त हुए चकवा विपुल आकाश को ऊँचे महलों की शिखरों पर आश्रय करनेवाले सुवर्ण की शोभायमान कान्ति से सर्वत्र व्याप्त हुआ देखकर शब्दायमान कण्ठोंवाली चकवियों को दिन में भी तालाबों पर वैसे छोड़ देते हैं, जैसे संध्या के आगमन काल में छोड़ देते हैं ॥ १६ ॥
हे मारिदत्त महाराज ! उस करहाट देश में 'गोवन' नामके गोविन्द का, जो कि वैसा समस्त गोमण्डल ( गायों के समूह ) का स्वामी है जैसे आप समस्त गोमण्डल ( पृथिवी मण्डल) के स्वामी हैं, गायों के समूह से बहुल. वन एवं धान्यों का स्थान तथा बगीचों के निकटवर्ती 'ओशाल' नामका गोकुल । गोशाला ) है । जो (गोकुल ), किसी स्थान पर बन्धन रहित ( छूटे हुए ) कुत्तों के बच्चों से जहाँ पर बकरियों के बच्चे व्याकुलित किये गये हैं । जो कहोंपर ग्वाल-बालकों की मैथुन क्रिया से जहाँपर वृद्ध मेढे दुःखित किये जारहे हैं। किसी स्थान पर बछड़े के देखने से यनों सेझर रहे गो-दुग्ध को वाराओं पृथ्वीतल प्रक्षालित किया जारहा है । कहीं पर मट्टा के घड़ों की राशि वितरण करने से जहाँपर अतिथि समूह सन्तुष्ट किया जारहा है। कहीं पर वन से लौटी हुई उत्तम गायों के ललाट- परिभागों पर दही, कुश, दूर्वा व अक्षत पुष्प स्थापित किये जा रहे हैं । कहीं पर टूटे हुए बन्नाले ( छूटे हुए ) ऊँट बालकों के पर्यटन से भयभीत हुए बछड़ों के खुरों से जहाँ पर घास चरने की नादों के पत्ते, कुचले या रौंदे जारहे हैं। कहींपर प्रौढ़ यौवनवाले अहारों से घूमाये हुए प्रचुर मुद्गरों के निष्ठुर प्रहारों द्वारा जहाँपर युद्ध-वेग के संचलन से कुछ हुआ भैंसाओं का झुण्ड मूच्छित हो रहा है। कहीं पर विशेष वलिष्ट अथवा उन्मत्त साड़ों के झुण्ड की लड़ाई से जहाँगर वालगर्भिणी गार्यो का झुण्ड भूमि पर लोट-पोट किया जा रहा है। कहीं पर प्रोढ़ बछड़ों वाली गायों के दूध से गृह देहली के गृह देवताओं का समूह पूजा जारहा है । कहीं पर गाय- बेल के विवाह के अवसर पर विकसित पुष्प-पल्लवों से युक्त हुई सुहा२. हेतूपमालंकारः भ्रान्तिमानलंकारस्य ।
१. संकरालंकारः ।