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________________ मस्तिलकाचम्पूकाव्ये बल्लरीप्रतानः कामिनीवुन्तलसंतान इव, स्वचितनेचरसहधरोचरणनननक्षत्रपवित्रोपत्यकानिचयः सुरशितोवय इव, क्वचिन्निनरजलजरितशिलान्तः कृतकुमरताधामः सामन्त इव. माकलोक इच कृशि मुतावलोकः, शरदामम इव कृतकमलसमागमः, सरस्वतीसमावेश इस पुण्डरामावकाशोपदेशः, समीक्षासिद्धान्त इन कपिलकुलकानः, शुद्धान्त इव सकञ्चकिवृत्तान्तः, पवनमार्ग इव सदन्तोत्सर्पः, सरोक्कादा इव पारापतनिवेश:, कात्यायिनोनिलम इव घिहितहेरम्यप्रणयः, पिङ्गलेषणावास इव शापचरनिवासः, कल्याशापचन इच समदनः, अनात्मवानपि सचेतकः, वीभत्सुप कविश्वजचिह्नः अमेवारासनोऽपि सर्गः, अमनसिजरसोऽपि संभात भोगिनौसङ्गः भरेवतीपतिरपि ताललाञ्छनः, अवधिकोऽपि विहङ्गिकाध्यासितस्कन्धः, अकुसुमायुषोऽपि सपुष्पवाणः, व मृग-विशेषों ) का समूह समस्त वृक्षों के समीप लाया गया है। इससे मानों-इन्द्र ही है अर्थात्- जैसे इन्द्र अनेक नेत्रों ( चक्षुओं ) से अलवृत्त होता है। किसी स्थान पर बहती हुई मदियों के प्रवाही का जहागर वक वलन ( घुमाय-फिराव) हो रहा है। इससे मानों-सर्प ही है अर्थात् -जैसे सप, वक्र बलन-( संचार) युक्त होता है । किसी स्थान पर जहाँपर. लता-समूह, ऐसे मोतियों के समूह से मिश्चित हो रहे हैं, जो कि तरुणसिंहों के कठिन नखों द्वारा विदारण किये गए हाथियों के कुम्भस्थलों से उछलकर गिर रहे थे। इससे मानों-कमनीय कामिनियों का कैश-पाश ही है। अर्थात जेसे कामिनियों के केश-पाय मोतियों को मालाओं से अलस्कृत होते हैं। किसी स्थान पर जिसका उपत्यका-(तालहटी । समूह, भीलों की स्थिगों के चरणनखरूपी नक्षत्रों से पवित्र हो रहा है, इससे मानों-सुमेरू पर्वत ही है। अर्थात-जैसे सुमस पर्दत नक्षत्रों से मण्डित होता है । किसी स्थान पर जिसने झरनों के जलद्वारा दिलाओं का प्रान्त भाग जर्जरित किया है, इससे मानों-हाथी के पाव भागों पर निष्ठुर प्रहार करनेवाला राजा ही है। कुपिकसुतों ( उल्लुओं) के लिए अवलोक ( नेत्रकान्ति ) देनेवाला यह ऐसा प्रतीत होता था-मानों-कुशिकस्त । इन्द्र ) के अवलोक ( दर्शन ) चाला स्वर्गलोक ही है। कमलों { मृगों ) का सम्मुख आगमन करनेवाला जो ऐसा मालूम पड़ता था-मानों-कमलों का समागम किया हुआ शरद ऋतु का आगमन ही है । जो, पुण्डरीक-अवकाश-उप-देश है । अर्थात--जहाँपर व्यानों के स्थान ( गुफा-आदि ) के समीप प्रदेश वर्तमान है। इससे मानों-गुण्डरीकअवकाश उपदेश वाला सरस्वती का सभादेश ही है। अर्थात् सरस्वती का सभास्थान, जिस में श्वेत कमल के अवकादा के चारों ओर व्याख्यान वर्तमान है 1 जो कपिलकुल-कान्त है । अर्थात् - यो फैपिलकुलों (बानर-समूहों ) से मनोज्ञ है अथवा वानर सम्हों के लिए अभीष्ट है। इससे मानों-सांख्य दर्शन हो है। अर्थात्-जैसे सांख्यशास्त्र कपिल-कुल-कान्त ( कपिलमुनि के शिष्य वर्ग को अभीष्ट) होता है। जो साञ्चुकि वृत्तान्त है । अर्थात्-जिसका मध्य भाग चुकी ( सो ) द्वारा कुण्डलाकार किया गया है। इससे मानाअन्तःपुर ही है। अर्थात्-जैसे अन्तःपुर कञ्चुकिगों ( रक्षकों ) के वृत्तान्त-सहित होता है। जो सत् दन्तउत्सर्ग है । अर्थात्-जिसके तटों की उत्कृष्ट रचना समीचीन है। इससे मानों-आकाश ही है । अर्थात्-जेसे आकाश, सत्-अन्तोत्सर्ग (चारों ओर नक्षत्रों सहित ) होता है। जो पारापत-निवेश (क्यूतरों को स्थिति वाला) है। इससे मानों-तालाब का स्थान ही है । अर्थात्-जैसे तालाब का स्थान कबूतरों के स्थानसहित होता है। जो विहित हेरम्बप्रणय है। अर्थात-जो हेरम्बों ( भमाओं के साथ स्नेह करनेवाला है। इससे-मानों--पार्वती-मन्दिर ही है। अर्थात् --जैसे पार्वती मन्दिर हेरम्ब ( श्रीगणेश ) के साथ किये हुए स्नेह-युक्त होता है । जो शाम्बरों । गायों ) का निवास है, इससे नातों-द्राबास ही है, अर्थात्-जेंगे ( भद्रावास शाक्वरों । वृषभों) का निवास होता है । जो समदन. ( राजवृक्षों से सहित ) है, इससे मानों-विवाहदिन का शरीर ही है । अर्थात्-जैसे विवाह दिन का शरीर, समदन ( कामदेव को जाग्रत करनेवाला ) होता
SR No.090546
Book TitleYashstilak Champoo Uttara Khand
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages565
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, P000, & P045
File Size17 MB
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