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तृतीय आवास:
३८३ पत्रैतत्स्वयमेव कामिषु निशि स्त्रीणां घनालिङ्कन यमाय स्परफेलिकामितसमायामस्त्रियामागमः । यत्राकिफालिभिः परिचितः सद्यः सोऽसौ रसः प्रीय कस्य न स क्षितीचरपते पालेयकालाऽधुना ॥४३॥
इति पठति बन्धिवृन्दारकवृन्ने, प्रविश्य प्रौढप्रदोषायां निशि प्रत्यक्षमाध्यमामा हैरिका मामेवं व्यजिज्ञपत्देव, विजयवर्धनसेनापसिविषयेन वर्धसे । पुनश्च
शुण्डालेधनवस्मरैरजगरिन्वायुधस्पधिभिः सुन्तैः कैतकपत्रपतिधरैः खड्गैस्सडिहुम्वरैः । क्षत्प्रकार प्रशिलीन्धरुवसुधाबन्धः शरोप्रागमः संग्रामस्तुमुलारततः समभवत्पर्जन्यकासक्रियः ॥४७॥
यस्मादन्यतरेयुरेत्र दिवसे, रक्तचन्दनचितचण्डिकालपनमनोहारिणि सप्ति पूर्वगिरिशिखरशेखरे सूरे, भवरम् । सर्वसनाहापदबहरूकोषाहलेषु प्रसिघलेषु, सैन्यकमुष्पोहे शेनेश्वरनिर्दिश्यमानाभिधानेषु, यस्तुवकासकाचवाहनेषु, का समय किसे प्रमुदित नहीं करता ? अपि तु सभी को प्रमुदित करता है। जिसमें यह प्रत्यक्ष दिखाई देनेवाला लियों का गाढ़ आलिशान कामी पुरुषों में स्वयं ही ( बिना याचना किये । होरहा है। जिस काल में ऐसी रात्रि का आगमन है, जिसकी दीर्घता कामक्रीड़ा में चाहे हुए के समान है और जिसमें यह प्रत्यक्ष प्रतीत हुआ तत्काल में निकला हुआ गमों का रस वर्तमान है, जो कि गीले अदरक के स्खण्डों से परिचित ( युक्त) है ॥४३६॥
प्रस्तुत गुप्तचर का विज्ञापन हे देव ! आपके 'विजयवर्धन' सेनापति द्वारा प्राप्त कीगई विजयश्री के फलस्वरूप आप वृद्धिंगद होरहे हैं।
__ क्योंकि आज से पहले दिन में ही [अचल नरेश की सेना के साथ] प्रलयकालीन मेघ को तिरस्कार करनेवाले हाधियों से, इन्द्रधनुष सरीखे अजगयों ( शिवजी के धनुष समान महाभयकर धनुषर्षों) से, केतकी धृक्ष के पत्तों का मार्ग ( सदृशता ) धारक भालों से एवं विजली सरीखी पाटोप (विस्तार ) वाली तलवारों से ऐसा भयानक संपाम हुश्रा, जो वर्षाकाल सरीखा था। अर्थात् - जिसरकार वर्षा ऋतु में प्रचुर जलवृष्टि होती है उसीप्रकार युद्ध में भी महाभयकर बाण-समूह की दृष्टि होरही थी और जिसमें माण्डलिक राजाओं के छत्ररूपी शिलीन्धों द्वारा पृथिवीमण्डल व्याप्त किया गया है पर्व जिसमें पाण-समूह की भयानक वृष्टि होरही है ।।४३७॥
हे राजन् ! क्या क्या होनेपर आज से पहले दिन युद्ध हुआ ? जब ऐसा सूर्य गगनमण्डल में विद्यमान होरहा था, जो उसप्रकार मनोहर था जिसप्रकार लालचन्दन से व्याप्त हुआ भवानीमुख मनोहर होता है और जो उदयाचल पजेत की शिखर पर मुकुट सरीखा प्रतीत होरहा था। जब शत्रु-सैन्य सभी को प्रहार करनेवाले विशेष कोलाहल से छ्याप्त होरहा था। जब सैम्य सैनिको में से प्रमुख सैनिकों के नाम-प्रणपूर्षक आदेश ( आज्ञा ) देने के कारण सेनापति द्वारा जिनमें सुभटों ( वीर योद्धाओं) के निरूपण किये जारहे नामवाले होरहे थे। ये 'अमुक सैनिक के लिए अमुक वस्तु देनी चाहिए, अमुक के लिए धन देना चाहिए, अमुक के लिए अत्र देना चाहिए, अमुक को कवच देना चाहिए एवं अमुक के लिए घोड़े-आदि की सवारी देनी चाहिए।' इसप्रकार जब सैनिक लोग वस्तु, वन, हथियार, बख्तर व घोड़ा-आदि अपेक्षित वस्तुओं के देने का विचार करने में तत्पर होरहे थे।
भनौकमुख्योद्देशेनेश्वरैर्निर्दिश्यमानेषु अभिधानेषु' का । १. समुच्चयालकार। २. उपमा व रूपकालकार ।