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वैदिकी हिंसा का निरसनपूर्वक अहिंसाधर्म की मार्मिक व्याख्या है और इसी में (पृ. १११-११४ ) में जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध की गई है एवं आ• ६-८ तक श्रावकाचार का दार्शनिक पद्धति से अनेक कथानकों सहित साङ्गोपाङ्ग निरूपण है। दर्शनशास्त्र-इसके पंचम आश्वास में सांख्य, जैमिनीय, वाममार्गी व चार्वाकदर्शन के पूर्वपक्ष हैं। यथा-पृश्यमाणो यथाङ्कारः शुक्लसा नैति जातुचित् । विशुद्धाति कुत्तरियत निसर्गमलिनं तथा ॥ मा० ५ पृ. २५०
न चापरमिरस्ताविष: समर्थोऽस्ति पत्थोऽयं सपःप्रयास: सफलायास: स्यात् ।। यतः । बादशवर्षा थोपा षोडशवर्षोचितस्थितिः पुरुषः। प्रीतिः पर। परस्परमनयोः स्वर्ग: स्मृत: सद्भिः॥श्रा० ५५० २५०-२५१
अर्थात् 'धूमध्यज' नामके विद्वान ने मीमांसक-मत का आश्रय लेकर सुदचाचार्य से कहा-'जिस. प्रकार घर्षण किया हुअा अक्षार (कोयला) कभी भी शुक्लता (शुभ्रता) को प्राप्त नहीं होता उसीप्रकार स्वभावतः मलिन चित्त भी किन कार गों से विशुद्ध हो सकता है ? अपि तु नहीं हो सकता । परलोकस्वरूपवाला स्वर्ग प्रत्यक्षप्रतीत नहीं है। जिसनिमित्त यह तपश्चर्या का खेद सफल खेद-युक्त होसके। क्योंकि 'बारह वर्ष की स्त्री ओर सोलह वर्ष की योग्य आयुवाला पुरुष, इन दोनों की परस्पर उत्कृष्ट प्रीति ( दाम्पत्य प्रेम ) को सजनों ने स्वर्ग कहा है ।।
इदमेव च तत्वमुपलभ्यालापि नीलपटेन - श्रीमत्रां झपकतनस्य महती सार्थसंपस्करों ये मोहादवधारयन्ति कुधियां मिथ्याफलाम्वेषिणः । ते तेनैव निहाप निर्दयतरं मुण्डीकृता लुजिताः केचित्पञ्चशिखीकृताश्च जटिन: कापालिकाबापरे । आ० ५ पृ० १५३
अर्थात्-'नीलपट' नामके कवि ने इसी बाममार्ग को लेकर कहा है 'जो मूदबुद्धि झूठे फल ( स्वर्गादि ) का अन्वेषण करनेवाले होकर अज्ञानवश कामदेव की स्त्रीमुद्रा (तान्त्रिक योग-साधना में सहायक स्त्री) का, जो कि सर्वश्रेष्ठ और समस्त प्रयोजन व संपत्ति सिद्ध करनेवाली है, तिरस्कार करते हैं, वे मानोंउसी कामदेव द्वारा विशेष निर्दयतापूर्वक ताड़ित कर मुण्डन किये गए, अथवा केश उखाड़नेवाले कर दिए गए एवं पश्चशिखा-युक्त ( चोटीधारी ) किये गए एवं कोई तपस्वी कापालिक किये गए। अण्डकर्मा-यावज्जोवन सुखं जीवेनास्ति मृत्योरगोचरः। भस्मीभूतस्य शान्तस्प पुनरागमन कुतः ।। भा० १५० २५३
___ अर्थात्-'चण्डकर्मा' कहता है कि निम्नप्रकार नास्तिकदर्शन की मान्यता स्वीकार करनी चाहिए-'जब तक जियो तब तक सुखपूर्वक जीवन यापन करो; क्योंकि संसार में कोई भी मृत्यु का अविषय नहीं है। अर्थान-सभी काल-कवलित होते हैं। भस्म की हुई शान्त देह का पुनरागमन किसप्रकार हो सकता है ? अपितु नहीं हो सकता ॥१॥
पश्चात् उनका अनेक, प्रवल व अकाट्य दार्शनिक युक्तियों द्वारा निरसन (खंडन) किया गया है।'
१. 'धुमत्रज' विद्वान् के जैमिनीय मत का निरास --- मलकलापतायात रल' विशुपति यातो भवति वन. तत्पपाणी यधा च कृतकिपः । कुशलभागिः श्रद्धन्यैस्तथासनयाश्रितरयमपि बलत्य देशाभागः कियेत नरः पुमान् ॥१॥ आ. ५ पू० २५४
सारांश-जिानकार मल ( कौट ) के कारण काता-यूक्त माणिक्यादि स्त्र यनों ( शाणोल्लेरान-आदि उपागों ) द्वारा विशुद्ध हो जाता है और जिसप्रकार मुवर्ण-पाषाण, जिसकी कियाएँ । अभि-तापन, छेदन व भेदन-आदि