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यशस्तिलकपम्पूचव्ये सामना मनि सितापील प्रजाता। समावि साय गिरोहमीरवापा विपनदाता ॥१०॥
मपि भामिनीवनविकासविदुत्तारणेषु भाडादगाव, प्रज्यप्रारम्भवासाकीने सानागमनमा मारसासनिवारणेषु परागराविमागमा व लापरिकलण्डनेषु परमधारावपाता, मणमामविगमेषु सकेसमा । । स, कियोस्कने साटिकरानाकारणारा हस, भागामिमतिमहामोहाविर्भात पित्तप्रसवपरित्रमाल, ममःमरसि । मलिनिवास स्रोतु मलामोगास, मी मनुष्याणां पविताहराः । भास्-जिसप्रकार विषवृक्ष की अब भक्षण करने से मनुष्य मूर्षित होजाता है उसीप्रकार श्वेत केश मी सब मानव कब मन मूर्षियत--शानी-कर देते हैं। अथवा यह, स्त्रियों के देखने की प्रेम-व्यवस्था को विन-भिम (नष्ट ) करने के लिए फरोत की धार है। अर्थात्-जिसप्रकार करोंत की धार लकड़ी वोरह ने पीर भारती है, उसीप्रकार वृद्ध पुरुष के श्वेत केश भी खियों द्वारा कीजाने वाली प्रेम-पूर्ण चितपन को नष्ट कर देते हैं। अथवा यह, स्थिों की प्रेममयी चितपन को नष्ट करने के लिए लेखपत्र (प्रविज्ञापत्र) ही है। ।।१०।। जो केश-सक्ष्मी युवावस्था के अवसर पर मय (काम-विकार ) रूपी अन्धकार से युक्त और श्यामवर्णवाले खियों के नेत्रों द्वारा कृष्ण कान्ति-युक्त होगई थी, वह आज वृद्धावस्था रूपी धोषन द्वारा एकल (शुभ) की जारही है ।।१०।।
ये मानवों के मेल बालरूपी भर, श्रीमद के लिये झालेखाने गतिविलासरूप विष्ठा को उस प्रकार दूर करते है जिसप्रकार चाएगों के दण्ड ( पशुओं की हड़ियाँ ). विष्ठा दूर करते हैं। जिसप्रकार। स्मराज-दूतों के भागमन-मार्ग, मृत्युनल की शीघ्रता का वृत्तान्त सुनते हैं उसीप्रकार सफेद बालरूपी अर मी शील होनेवाली मृत्यु का वृत्तान्त सुनते हैं। भावार्य-जिसप्रकार यमदूतों का आगमन शीध्र होनेवाली मृत्यु सपक है उसीप्रकार वृद्धों के सफेद पालादर भी उनकी शीघ्र होनेवाली मृत्यु सूचित करते हैं। इसीप्रकार प्रस्तुर खेत बालार, शाररस का विस्तार उसप्रकार निवारण (रोकना) करते है जिसमकार वि-समूह का भागमन वृद्धिंगत जल-प्रसार को निवारण कर देता है एवं जिसप्रकार फुल्दारे की धार । ऊपर गिरने से लकड़ी लिस-भिन्न (चूर-चूर ) होजाती है उसीप्रकार सफेद बालाहर भी मानसिक धानों (बाम-वासनामों) को छिम-मित्र ( घर-घर) कर देते हैं। अर्थात-वृद्धावस्था में जब सफेव पालस्य । भारों अ उगम होजाता है तब मानसिक चेधाएँ स्वयं नष्ट होजावी है एवं जिसमकार बँधकती हुई भनि की उत्पचि प्रामोंको भस्म कर देती है उसीप्रकार वृद्ध मानषों के सफेद बालापुर भी इन्द्रियरूपी प्रामों। ने मस्म (शक्तिहीन) कर देते हैं एवं जिसत्रभर स्फटिक पाषाण-घटित असविशेष या वाण । समागम भूमि सोदने में समर्थ होता है, उसीप्रकार सफेद पालारों का समागम भी शारीरिक कान्दिको
सेदने-नट करने में समर्थ होता है। इसीप्रघर ये सफेद बानापुर भविष्यत् में होनेवाली बुद्धि विशेष रूप से मूचित करने में उसप्रकार समर्थ होते है जिसप्रकार विषवृक्ष के फूलों का संगम मानषों की बुद्धि के विशेषरूप से मूचित करता है। प्रकट हुए सफेद बालरूपी भकुर, श्यरूपी तालाब में खित हुए श्रमदेव रूपी ब्राह्मण ( कर्म चाण्डाल )के अयोग्यकास की सूचना उसप्रकार कर देते हैं जिसप्रकार वासाव में स्थित हुआ हड़ियों का विस्तार ब्राह्मण न अयोग्यकाल सूचित करता है।
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लासोसारपेत इति क, ग, घ, च. प्रतिए पाठः । A बिलास एव जस्सार विद्या इति टिप्पणी । दिमक्षति नो पार विशेष स्पष्टः–सम्पादक
..मालंकार। २.ख-अलपर। ३. उपमाहारसमुच्चयालधार।