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व्रत कथा कोष
लिये विवादस्थ तिथि का विचार न करके छह घटी तिथि ग्रहण करनी चाहिये । सिंहनंदी ने एकाशन की तिथि का विस्तार से विचार किया है । उन्होंने अनेक उदाहरणों और प्रतिउदाहरणों के द्वारा मध्यान्ह-व्यापिनी तिथि का खण्डन करते हुये छह घटी प्रमाण को ही सिद्ध किया है । प्रतएव एकाशन के लिये पर्व-तिथियों में छह घटी प्रमाण तिथियों को ही ग्रहण करना चाहिये ।
"तिथिर्यथोपवासे स्यादेक भक्तेऽपि सा तथा" इस प्रकार का आदेश रत्नशेखर सूरी ने भी दिया है । जैनाचार्यों ने एकाशन की तिथि के संबंध में बहुत ऊहापोह किया है । गणित से भी कई प्रकार से प्रानयन किया है।
प्राकृत ज्योतिष के तिथि-विचार प्रकरण में विचार-विनिमय करते हुये बताया है कि सूर्योदय काल में तिथि के अल्प होने पर मध्यान्ह में उत्तर तिथि रहेगी, परन्तु एकाशन के लिये रसघटी प्रमाण होने पर पूर्व तिथि ग्रहण की जा सकती है। यदि पूर्व तिथि रसघटी प्रमाण से अल्प है तो उत्तर तिथि लेनी चाहिये । यद्यपि उत्तर तिथि मध्यान्ह में व्याप्त है, पर कुलाद्रि घटिका प्रमाण में अल्प होने के कारण उत्तर तिथि ही व्रत-तिथि है।
अतएव संक्षेप में उपवास तिथि और एकाशन तिथि दोनों एक ही प्रमाण ग्रहण की गई है । यद्यपि जैनतर ज्योतिष में एकाशन तिथि को व्रततिथि से भिन्न माना जाता है तथा गणित द्वारा अनेक प्रकार से उसका मान निकाला गया है । परन्तु जैनाचार्यों ने इस विवाद को यहीं समाप्त कर दिया है, उन्होंने उपवासतिथि को ही व्रततिथि बतलाया है । एकाशन की पारणा मध्यान्ह में एक बजे करने का विधान किया गया है । यद्यपि काष्ठासंघ और मूलसंघ में पारणा के सम्बन्ध में थोड़ा-सा विवाद है, फिर भी दोपहर के बाद पारणा करने का उदयतः विधान है। षोडशकारण और मेघमाला व्रत का विशेष-विचार
नहि व्रतहानिः कथं पूर्वं प्रति षष्ठोपवास कार्यो भवति एका पारणा भवति न तु भावनोपवास हानि भवति प्रतिपदिनमारभ्य तदन्तं क्रियते व्रतं एकव्रतं त्रिप्रति पत्कदाचितम् मासिकेषु च वचनात् । तथा श्रुतसागर, सकलकीति, कृतिदामोदराभ्र देवादिकथा वचनाच्चेति न तु पौणिमा ग्राह्या भवति ।