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________________ व्रत कथा कोष [ ७४५ आसन पर खड़ा होकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके 'अहं समस्तसावधयोगविरस्तोमि' ऐसा कहकर ६ वक्त अथवा ३ बार णमोकार मन्त्र जपकर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर ३ आवर्त और एक शिरोनति करे । (१) प्रावत-दोनों हाथ जोड़ बायें से दायें तरफ घुमाने को प्रावत कहते हैं। (२) शिरोनति-तीन आवर्त करके एक बार सिर झुकाकर नमस्कार करना। नमस्कार करने का मन्त्र प्राग्दिग्विदिगन्तरतः केवलिजिनसिद्धसाधुगणदेवाः । ये सर्वद्धिसमृद्धाः योगीशास्लानहं वन्दे ।। यह मन्त्र पूर्व दिशा का है । चारों दिशाओं के लिए उक्त मन्त्र आदि के 'प्राग्दिग्' के स्थान में 'दक्षिणादिग्' इसी तरह 'पश्चिमादिग्' और उत्तर में 'उत्तरादिग्' पाठ बदलकर चारों दिशाओं में ३६ बार मन्त्र, १२ मावत और ४ नमस्कार कर पद्मासनादि प्रासनेमाढ़ प्रथम सामायिक पाठ संस्कृत (भाषा) पढ़े । पश्चात् बारह भावना, वैराग्य भावना आदि बहुत धीरे-धीरे उस पाठ का भाव समझते हुए पढ़े। फिर नमस्कार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे। जाप्य शुरु करने के पहले 'प्रों ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यो नमः ।' इसको पढ़ लेवे। और प्रकार जाप्य के अन्त में भी पढ़े। जाप्य की विधियां तीन हैं । १. कमल जाप्य २. हस्तांगुलि जाप्य ३. माला जाप्य प्रथम कमल जाप्य विधि-अपने हृदय में आठ पांखुरी के एक श्वेत कमल का विचार करे । उसकी हरेक पांखुरी पर पीतवर्ण के बारह-बारह बिन्दुओं की कल्पना करे । तथा मध्य के गोल वृत्ति में १२ बिन्दुओं का विचार करे । इन १०८
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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