SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 799
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४० ] प्रत कथा कोष तुगमांसात्पतत्सर्पपरिसर्पजलौकसाम । चतुर्दश नवाद्यन्तक्षमणानि वधे छिदाः । (प्रायश्चितचूलिका) भावार्थ :-मृग, शशक, रोधग्रादि, तृणचर जीवों के बध का १४ उपवास, सिंह आदि मांस भक्षियों के वध का १३ उपवास, तीतर, मयूर, कुक्कुट, पारावतादि पक्षियों के वध का १२ उपवास का प्रायश्चित है, सर्पगोनसादि के वध का ११ उपवास, गोधरेक कृकलासादि परिपर्स के वध का १० उपवास, और मकर मत्स्यादि जलचर जीवों के वध का ६ उपवास का प्रायश्चित है। गर्भस्य पातने पापे द्वादश स्मृताः । भावार्थ :-गर्भपात के पतन करने के पाप का १२ उपवास प्रायश्चित है । सुतामातृभगिन्यादिचांडालीरभीगम्य च । अश्नुवीतोपवासानां द्वात्रिशत् मसंमयम् ।। (प्रायश्चित चूलिका) भावार्थ :-पुत्री, माता, बहिन आदि तथा चांडाली इनके साथ संयोग करने वाले व्यक्ति को ३२ उपवास करना चाहिये । मद्य मासं मधु स्वप्ने मैथनं वा निषेवने । उपवासद्वयं कुर्यात् सहस्त्रक जपोत्तमम् ।। (प्रायश्चित चूलिका) भावार्थ :- यदि स्वप्न में मद्य, मांस, मधु इनका व मैथुन सेवन किया हो तो दो उपवास और एक हजार जाप्य करे । रेतमूत्रपुरीषारिण मद्यो मांसमधूनि च । अभक्ष्यं भक्षयेत् षष्ठं दर्पतश्चेद्विषट् क्षमाः ।। भावार्थ :-प्रमादवश यदि रेत, मूत्र, मल, मद्य, मांस, मधु, अभक्ष्य, रुधिर, अस्थि, चर्म अजानपने खाने में आ गया हो तो ६ उपवास का प्रायश्चित करे । और यदि उक्त पदार्थ अहंकारपूर्वक सेवन किये हो तो १२ उपवास का प्रायश्चित करे। पंचोदुम्बरादीन् भक्षयति देशवती यदि प्रमाददाभ्याम् । ताहि तस्य भवतिच्छेदः द्वौ उपवासी त्रिरात्रिद्विकम् ।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy