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व्रत कथा कोष
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भावार्थ :-दांत उगे हुए बालक के मरण का सूतक माता-पिता को दश दिन का होता है तथा आसन्न बन्धुनों को एक दिन का और अनासन्न बन्धुओं को स्नान मात्र तक का होता है।
कृतचौलस्य बालस्य पितुर्धातुश्च पूर्ववत् । पासन्नेतरबन्धूनां पंचाहैकाहमिष्यते ।। मरणे चोपनीतस्य पित्रादीनां तु पूर्वकम् ।
आसन्नबान्धवानां च तथैवाशौचमिष्यते ॥ भावार्थ :-चौल संस्कार हुए बालक के मरण का सूतक माता, पिता और भाइयों को दश दिन का, आसन्न बन्धुत्रों को पांच दिन का और अनासन्न बन्धुओं को एक दिन का होता है ।
उपनीत (यज्ञोपवीत) संस्कार हुए बालक के मरण का सूतक माता, पिता, भाई और आसन्न बंधुनों को १० दिन का होता है और अनासम्म बन्धुत्रों को पीढ़ी के प्रमाण से सूतक होता है ।
आसन्न बन्धुनों को पीढ़ी प्रमारण सूतक तृतीयपादे स्यात्पूर्णे चतुष्पादे षडं भवेत् । पंचमे दिन पंचव षष्ठे च तर्यहा भुवि ।। सप्तमे च तृतीयं स्यादष्टे पुस्यहोरात्रिकम् ।
नवमे च दिनाएं, स्याद्दशमे स्नानमात्रतः ।।
भावार्थ :-मरण का सूतक तीसरी पीढ़ी तक दश दिन का होता है पश्चात् चौथी पीढ़ी में ६ दिन का, पांचवीं पीढ़ी में ५ दिन का, छठवीं पीढ़ी में ४ दिन का, सातवीं पीढ़ी में ३ दिन का, आठवीं पीढ़ी में १ दिन रात्रि का, नवीं पीढ़ी में दो प्रहर का और दसवीं पीढ़ी में स्नान मात्र से शुद्ध होता है।
मातामहो मातुलश्च, म्रियते वाऽथ ततस्त्रयः । दौहित्रो भागिनेयश्च पित्रो4 म्रियते श्वसा ।। स्वगृहे गृहमाशौचं गृहबाह्यो न सूतकम् ।