SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 792
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत कथा कोष [ ७३३ भावार्थ:-निर्दोष प्रसूति में बालकोत्पत्ति का सूतक दश दिन का होता है । प्रसूता स्त्री डेढ़ माह में शुद्ध होती है और प्रसूति स्थान एक महीने में शुद्ध होता है। अनिरीक्षण और अनधिकार सूतक तदा प्रसवे मातुर्दशाहमनिरीक्षणम् । प्रघं विशतिरात्रं स्यादनधिकार लक्षणम् ॥ स्त्रीसूतौ तु तथैव स्यादनिरीक्षणलक्षणम् । पश्चादनधिकाराधं स्यात्रिशद्दिवसं भवेत् ।। भावार्थ :-पुत्र जन्म में प्रसूता स्त्री को दश दिन का प्रनिरीक्षण सूतक होता है । पश्चात् २० दिन का अनधिकार सूतक होता है। और पुत्री जन्म में माता को १० दिन का अनिरीक्षण सूतक होता है और ३० दिन का अनधिकार सूतक होता है। जननेऽप्येवमेवाचं मात्रादीनां तु सूतकम् । प्रासन्ने दश रात्रि स्याद् षडात्रि च चतुर्थके ।। पंचमे पंच षट्वेद, सप्तमे च दिनत्रयम् । अष्टमे च अहोरात्रि, नवमे च प्रहरद्वयम् ।। दशमे स्नानमात्रं स्यात् एतद् नासन्नसूतकम् । प्रातृतीयात्समासन्ना प्रनासन्नास्ततः परे । भावार्थ :-जननाशौच में माता-पिता, भाई और आसन्न बन्धुनों को दश दिन का सूचक होता है । और अनासन्न बन्धुओं को अर्थात् चौथी पीढ़ी में ६ दिन, पांचवीं में ५ दिन, छठी में ४ दिन । सातवीं में ३ दिन, आठवीं में १ दिन रात्रि, नवमी में दो प्रहर, और दशमी पीढ़ी में स्नान मात्र से शुद्ध हो जाती है । तीन पीढ़ी तक पासन्न और चौथी से १० पीढ़ी तक अनासन्न कहते हैं। प्रश्वा च महिषी चेटी गौः प्रसूता गृहांगणे । सूतकं दिनमेकं स्यात् गृह बाह्येन सूतकम् ।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy