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________________ व्रत कथा कोष [ ७१७ अंत में उद्यापन करे, उस समय नवग्रह विधान कर महाभिषेक करे, १६ मुनिसंघों को आहार दानादिक देवे, १६ आर्यिका माताओं को आहार दानादिक देवे । राजा श्रेणिक व रानी चेलना देवी को कथा पढ़ े । त्रिकाल तृतीया व्रत कथा भाद्र शुक्ला ३ के दिन स्नानकर शुद्ध वस्त्र पहनकर मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साक्षात् नमस्कार करे, मंडप को शृंगारित करके मण्डप वेदी के ऊपर ७२ दल के कोठों का यन्त्रदल पंचवर्ण से मांडे, अष्टमंगल द्रव्य रखे, मण्डल पर भ्राठों दिशा सम्बन्धी आठ सूत्र वेष्टित सजाये हुये मंगल कलश रखे, यंत्रदल में एक सुशोभित श्वेत सूत्र वेष्टित कुंभ रखे, ऊपर चंदोबा बांधे, अभिषेक पीठ पर त्रिकाल चौबीसी की प्रतिमा किंवा चौबीस तीर्थंकर यक्षक्षिणी सहित स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, एक थाली में पहले के समान यंत्र निकालकर उस थाली में ७२ पान रखे, उन पानों पर गंध, अक्षत, पुष्प फल, आदि रखकर उस थाली को मंडल के मध्य कुंभ पर रखे, उस थाली के मध्य में त्रिकाल तीर्थंकर की मूर्ति रखे, उसके बाद प्रत्येक तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करे, पंचकल्याण के अर्घ चढ़ावे, जयमाला पढ़े, स्तोत्र पढ़े । उनके बीज मन्त्रों को बोलता हुआ प्रत्येक कोष्ठक में अर्घ्य चढ़ावे, श्री फल चढ़ावे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ग्रहं निर्वाणादि द्वासप्तति त्रिकाल तीर्थंकरेभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र से पुष्पों को लेकर १०८ बार जाप्य करे, जिनसहस्र नाम पढ़े तीर्थंकरों के जीवन चारित्र पढ़ े, व्रत कथा पढ़ े, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य ३ माला रूप में करे, जिनवाणी व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी का यथायोग्य सत्कार करे पूजा करे, क्षेत्रपाल का भी सम्मान करे, एक थाली ७२ पान लगाकर उनके ऊपर प्रथक प्रथक अर्घ्य रखकर, महाअर्घ्य करे, महा अर्घ्य की थाली हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे । उस दिन उपवास करे, धर्मध्यान से समय बितावे, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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