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________________ व्रत कथा कोष [ ७१३ एक बार कार्तिक अष्टान्हिका में अपने हाथ से स्वयं भ्रष्टान्हिका पूजा अभिषेक करने लगा । उपवास भी कर रहा था कि १५ के दिन उसने चन्द्रग्रहण देखा जिससे उसे वैराग्य हो गया और अपने पुत्र को राज्य देकर स्वयं दीक्षित हो गये । घोर तपश्चरण करके समाधिपूर्वक मरण किया जिससे वह सवार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ । वहाँ से चयकर मोक्ष जायेगा । ऐसा इस व्रत का महत्व है । अथ क्षायिक भोग व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ला ६ को एकाशन करे व सप्तमी को उपवास करे । पात्र में चार पत्ते लगावे णमोकार मन्त्र का जाप चार बार करे । यह व्रत पहले सुरेन्द्रदत्त सेठ ने किया था व उसकी पत्नी सुमति ने किया था जिससे वे अभ्युदय सुख भोगकर मोक्ष गये । श्रथ क्षायिक लाभ व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ला ४ को एकाशन करे ५ के दिन उपवास करे । पात्र में तीन पत्त े रखे, णमोकार मन्त्र का तीन समय जाप करे, तीन दम्पतियों को भोजन करावे । यह व्रत वसुदत्त सेठ ने किया था । उसको सद्गति प्राप्त हुई । श्रथ क्षायिकदान व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे अन्तर केवल इतना है कि ज्येष्ठ शुक्ला ३ को एकाशन करें । ४ को उपवास करे । फिर पूजा वन्दना करे पात्र में दो पत्त े रखे । णमोकार मन्त्र का जाप दो बार करे । दो दम्पतियों को भोजन कराके वस्त्र आदि दान दे । यह व्रत विधि सिंहसेन महाराज ने की थी । उसको स्वर्ग सुख मिला था ऐसी कथा है । क्षमावली व्रत किसी भी माह की कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष की दशमी को क्षमागुरण का चिंतन A
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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