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________________ व्रत कथा कोष [ ७०५ इस प्रकार एकम से चतुर्थी पर्यन्त पूजा करके पांचवें दिन ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन श्रु त को अलमारी से निकाल करके स्वच्छ करे, नवीन वेष्टन बाँधे, श्रुत स्कन्ध विधान का पंचवर्ण रंग से मण्डल निकाल कर श्रु त स्कन्ध विधान करे, उस दिन उपवास करे, षष्ठि के दिन चतुर्विध संघ को दान देकर श्रावक-श्राविकाओं को भोजन वस्त्रादिक देवे । इस व्रत को १२ वर्ष करके अंत में उद्यापन करे, उस समय श्रु त स्कंध यंत्र खुदवाकर प्रतिष्ठा करे, जिनमन्दिर में उपकरणादि दान देवे । कथा इस व्रत को भरत चक्रवति ने पालन किया था, अंत में मोक्ष गये, इस व्रत की कथा में राजा श्रेणिक व रानी चेलना की कथा पढ़ । श्रावण द्वादशी व्रत का स्वरूप श्रावणद्वादशीव्रतस्तु भाद्रपदशुक्लद्वादश्यां तिथौ क्रियते । अस्य व्रतस्यावधि द्वादशवर्षपर्यन्तमस्ति । उद्यापनान्तरं व्रतसमाप्तिर्भवति । अर्थ :-श्रावण द्वादशी व्रत भाद्रपद शुक्ला द्वादशी को किया जाता है । यह व्रत बारह वर्ष तक करना पड़ता है । उद्यापन करने के उपरान्त व्रत की समाप्ति की जाती है। विवेचन :-श्रावण द्वादशी व्रत के दिन भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा, अभिषेक और स्तुति की जाती है। नित्यनैमित्तिक पूजा-पाठों के अनन्तर गाजेबाजे के साथ भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में चार बार तीनों सन्ध्याओं और रात में लगभग दस बजे "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्लू श्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः स्वाहा ।" इस मन्त्र का जाप करना चाहिए । प्रायः इस द्वादशी तिथि को श्रवण नक्षत्र भी पड़ता है, क्योंकि यह द्वादशो श्रवण नक्षत्र से युक्त होती है । इस व्रत की सामान्य विधि अन्य व्रतों के समान ही है, परन्तु विशेष यह है कि यदि श्रवण नक्षत्र त्रयोदशी को पड़ता हो या एकादशी में ही पा जाता हो तथा द्वादशी को श्रवण नक्षत्र का प्रभाव हो तो द्वादशी के साथ श्रवण नक्षत्र के दिन भी व्रत करना चाहिए । यों तो प्रायः द्वादशी तिथि को श्रवण आ ही जाता है ऐसा बहुत
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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