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व्रत कथा कोष
ॐ ह्रीं पहँ वृषभादि चतुर्विंशति तीर्थकरेभ्यो यक्षयक्षी सहितेभ्यो नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में सोलह पान लगाकर उन पानों पर प्रत्येक पर अष्ट द्रव्य व मिठाई रख कर हाथ में अर्घ्य को लेवे, एक नारियल भी रखे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक उपवास करे, दूसरे दिन जिनपूजा करके नैवेद्य चढाकर स्वयं घर जाकर पारणा करे।
__ इस तरह इस व्रत को १६ या ११ या ६ अथवा ५ या तीन वर्ष तक यथाशक्ति करे, अन्त में उद्यापन करे, उस समय महाभिषेक करे, सोलह पात्रों को सोलह प्रकार का पकवान बनाकर देवे, सोलह मुनिसंघ को आहारादि देवे ।
कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में नेपाल नाम का बहुत बड़ा देश है, उस देश में ललितपुर नाम का गांव है, उस नगर का राजा उतुग अपनी रानी चित्रगुप्ता के साथ राज्य करता था।
एक दिन उस नगर के बाहर उद्यान में अवधिज्ञान सम्पन्न श्रुतसागर महामुनि पधारे, राजा को समाचार प्राप्त होते ही, सर्व परिवार सहित नगर वासियों को लेकर उद्यान में गया, मुनिराज के दर्शन कर धर्मोपदेश सुनने के लिए धर्म सभा में जाकर बैठ गया, कुछ समय उपदेश सुनने के बाद रानी चित्रगुप्ता हाथ जोड़कर नमस्कार करती हुई विनय से कहने लगी कि हे गुरुदेव मेरे कल्याण के लिए मुझे कुछ व्रत प्रदान कीजिए।
___ तब मुनिराज ने उसको सूतक परिहार व्रत की विधि कही, रानी ने प्रसन्नता से उस व्रत को स्वीकार किया, सब लोग नगर में वापस लौट आये, रानी ने अच्छी तरह से व्रत को पालन किया, अन्त में उद्यापन किया, व्रत के प्रभाव से रानी मर कर स्वर्ग में गई और देवपद पाया । प्रागे मनुष्य भव में पाकर मोक्ष जायेगी।
सिद्ध कांजिका व्रत किसी भी महिने के शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की अष्टमी को कांजि आहार