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व्रत कथा कोष
यों लखि सुगन्धदर्शव्रतसार, कोजे हो ! भवि शर्मविचार। ... भवि नरनारी व्रत जो करें, ते संसार-समुद्र से तिरें ।
दोहाश्रुतसागर ब्रह्मचारियों, ले पूरब अनुसार । भाषा सार बनाय के, सुखित खशाल अपार ।।
सिंहनिष्क्रीडित व्रत की व्यवस्था सिंहनिष्क्रीडितं त्रयोदशमासैरष्टाविंशतिदिनैः परिपूर्ण भवति । अवशेषो विधिः हरिवंशपुराणाद् बृहत्सार चतुर्विशतिकाग्रन्यादुद्यापनसाराच्च सम्यग् ज्ञातव्यः, अत्र तु विस्तार भयान्न व्याख्यातः। एतेषु हानिवृद्धिनमो न ब्यावर्तितः, यतो हिएतानि व्रतानि महामुनीनां संचरितान्येव । श्रावकस्यापि करणीयत्वादुपद्दिष्टानि । अतः श्रावकर्देशकालाभिज्ञैश्च द्रव्यक्षेत्रकालाभावान् समाश्रित्य सम्यग्यत्नाचारतया तिथिव्रतमार्गमनुलङध्य आधाघ श्रतानुकूलतया यतेर्मार्गाविरोधेन व्रतमाचरणीयम् । इति वात्सरिकानि व्रतानि ।
अर्थ :-सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत तेरह मास अट्ठाईस दिनों में पूर्ण होता है । शेष व्रतों की विधि हरिवंश पुराण, बृहत्सारचतुर्विंशतिका प्रौर उद्यापनसार से सम्यक् प्रकार अवगत करनी चाहिए, यहां विस्तारभय से नहीं दी गयी है । इन व्रतों की तिथियों के हानि, वृद्धि क्रम का भी वर्णन नहीं किया गया है, क्योंकि ये व्रत महामुनियों के होते हैं । साधारण श्रावक इन व्रतों का पालन कर सकता है, इसीलिए यहां पर इन का वर्णन किया गया है । अतएव देश-काल मर्यादा विज्ञ श्रावक को द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय लेकर सम्यक् यत्नाचार पूर्वक व्रत तिथि मार्ग का उल्लंघन न करते हुए आगम के अनुकूल और मुनि मार्ग के अविरोधी व्रतों का आचरण करना चाहिए । इस प्रकार सांवत्सरिक व्रतों का निरूपण समाप्त हुआ।
विवेचन :-सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत तीन प्रकार का होता है-उत्तम, मध्यम और जघन्य । उत्तम सिंहनिष्क्रीड़ित व्रत १३ महिना २८ दिन तक किया जाता है, मध्यम ५ महिना १० दिन और जघन्य २ महीना २० दिन तक किया जाता है । जघन्य व्रत में ६० दिन उपवास और २० दिन की पारणाएँ होती हैं । प्रथम एक