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ब्रत कथा कोष
दोहा देखो ऐसी पापिनी, गई कहां दुखदाय । ढूंढत ढूढत कन्यका, लखी मसाणा जाय । जाय कही दुखदा सुता, इहि थानक किमि प्राय । भूत प्रेत लागो कहा, ऐसी विधि जतलाय ॥
चौपाई तिलकमती भाषे उमगाय, ते भाख्यो सो कीन्हों माय ॥ बन्धुमती कहि तुरत पुकार, देखो तो इह असत उचार । जानो कहा कब इह प्राय, ब्याह समै दुख दिया अघाय ॥ तेजोमती विवाहित करी, सभासमय में नाही टरी। खिजि भाषी उठ चलघर प्रबै, ले आई अपने घर जबै ॥ तिलकमती सों पूछे मात, तें कैंसों वर पायो रात । सुता कह्यो वरियो हम गोप, रैन परणिपरभातमलोप ॥ बन्धुमती भाषी तत्काल, री ! ते वर पायो गोपाल ।
दोहा जिनकी पूज समानफल, हुप्रो न होसी कोय । स्वर्गादिक पद को करे, पुनि देहै शिवलोय ।।
चौपाई
दश सम्वत्सर लो जो करे, ताही के जिनगुरण अवतरे। करे बहुरि उद्यापन राय, सुनो विधी तुम मनवचकाय ॥ महाशान्ति अभिषेक करेय, जिनवर पाये पुहुप धरेय । जो उपकरन धरे जिनथान, ताको भेद सुनों चित पान ॥ दश-रङ्गी चन्देवो लाय, सो जिनबिब उपरि तनवाय ।
और पताका दशरङ्ग सार, बाजे घन्टानाद अपार ।। मुक्तमाल की शोभा करे, चांवर युगल अनूपम धरे। और सुनो प्रागे मन लाय, प्रभु की भक्ति किये सुखथाय ।