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व्रत कथा कोष
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सत्यभामा के द्वारा सम्मान न मिलने पर नारद को बहुत बुरा लगा, विचारते रहे कि कौनसा ऐसा कार्य करू जिससे सत्यभामा को कष्ट उत्पन्न हो, विचारतेविचारते उपाय ढ ढ निकाला, वह यह कि कृष्ण महाराज की किसी विशिष्ट सुन्दर कन्या के साथ शादी करवा देना चाहिए, जिससे सत्यभामा, घमण्डी को सोत का कष्ट सहन करना पड़े, कन्या की खोज करते-करते कुन्दनपुर नगर में भीष्मराजा की कन्या रुकमणी को देखा, रुकमणो बहुत हो सुन्दर थो, इसलिए नारद ने रुकमणी का चित्र बनाकर कृष्ण को दिखाया, चित्र देखते ही कृष्ण मोहित हो गये, नारद ने उपाय बताया कि आप बलदेव के साथ कुन्दनपुर जाइये और रुकमणी का हरण कर द्वारिका लेकर आ जाइये ।
कृष्ण और बलदेव रथारूढ़ होकर कुन्दनपुर के उद्यान में जाकर छिपकर बैठ गये, रुकमणी भी कामदेव की पूजा के बहाने उद्यान में आ गई, कृष्ण ने रुकमणी को उठाकर रथारूढ़ कर दिया और पंचजन्य शंख को बजाया और कहा कि मैं द्वारिका नगरी का राजा कृष्ण रुकमणी को हरकर ले जा रहा है जिसमें भी ताकत हो मुझसे छुड़ा लेवे, ऐसा सुनते ही रुकमणी का भाई रूप्यकुमार राजा शिशुपाल सहित युद्ध के लिए युद्धभूमि में आ गये, घोर युद्ध होने लगा, एक तरफ दो और एक तरफ अनेकों, तो भी कृष्ण और बलदेव ने रूप्यकुमार को बन्धन में डालकर, शिशुपाल को मार गिराया, रुकमणी को द्वारका नगरी में लाकर उसके साथ कृष्ण ने विवाह कर लिया और उसको मुख्य पट्टराणी का पद देकर राजमहल में रख लिया, कामसुख का अनुभव करते हुये प्रानन्द से रहने लगे, कालक्रम से रुकमणी गर्भवती हुई और सत्यभामा भी, नौ महीने के पूर्ण होने पर दोनों ने पुत्रों को जन्म दिया, प्रसूति के छठे दिन की रात्रि में रुकमणी से उत्पन्न होने वाले पुत्र को पूर्वभव का शत्रु आकर हरण कर एक भयंकर पटवो में ले गया और एक विशाल शिला के नीचे मारने के लिये रखकर चला गया, कर्मयोग से राजा कालसंवर अपनी पत्नी कनकमाला सहित विजयाध पर्वत से निकलकर वनक्रीडा को वहां आया और शिला को हिलती हुई देखकर अाश्चर्यचकित हुआ।
जब शिला को अपने विद्या बल से ऊपर उठाया तो नीचे एक सुन्दर छोटेसे बालक को देखा, तुरन्त ही राजा ने बालक को उठाया और रानी कनकमाला की