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व्रत कथा कोष
कानि च । तिथि सावधिकानि कानि ? सुचिन्तामरिणभावना-पञ्चविंशति भावनाद्वात्रिंशत-सम्यक्त्व पञ्चविंशत्यादीनि णमोकार पञ्चत्रिशतकानि ।।
अर्थ :-सावधि व्रतों को कहते हैं, ये दो प्रकार के होते हैं-तिथि की अवधि से किये जाने वाले और दिनों की अवधि से किये जाने वाले । तिथि की अवधि से किये जाने वाले व्रत कौन-कौन हैं ? प्राचार्य कहते हैं कि सुख चिन्तामणि भावना, पञ्चविंशति भावना द्वात्रिंशत् भावना, सम्यक्त्व पञ्चविंशति-भावना और णमोकार पञ्चत्रिंशत्-भावना।
विवेचन :- जो किसी भी प्रकार की अवधि को लेकर किये जाते हैं, वे सावधिक व्रत कहलाते हैं यो तो सभी व्रतों में किसी न किसी प्रकार की मर्यादा रहती ही है । परन्तु सावधिक व्रतों में उन्हीं की गणना की गयी है, जिनमें तिथि आदि का विधान बिल्कुल निश्चित है । ऐसे व्रत सुख चिन्तामणि भावना, णमोकार पञ्चत्रिंशत् भावना आदि हैं । इन व्रतों में तिथि की अवधि के अनुसार उपवास किये जाते हैं । समय मर्यादा के अतिक्रमण करने पर इन व्रतों का फल भी कुछ नहीं होता है । इनका फल समय-मर्यादा पर ही प्राश्रित है । अतः ये व्रत तिथि सावधिक कहलाते हैं । क्रियाकोश आदि प्राचार के ग्रन्थों में इन व्रतों की विशेष विशेष विधियों का निरूपण किया गया है । इस ग्रन्थ में पूर्वाचार्यों द्वारा प्रतिपादित १०८ व्रतों की विधियों का संक्षेप में निरूपण किया गया है । व्रत विधियों के सम्बन्ध में प्रकरणवश आगे विचार किया जायेगा।
सुख चिन्तामणि व्रत का स्वरूप उच्यते, सुख चिन्तामणौ चतुर्दशी चतुर्दशकं, एकादश्येकादशकं, अष्टम्यष्टकं, पञ्चमी पञ्चकं तृतीया त्रिकमेवमुपवासाः एकचत्वारिंशत् । न कृष्णपक्ष शुक्लपक्षगतो नियमः, केवलां तिथि नियम्य भवन्तीति उपवासाः । अस्य व्रतस्य पञ्चभावना: भवन्ति, प्रत्येक भावनायामभिषेको भवति ।
अर्थ :- सुख चिन्तामणि नाम के व्रत को कहते हैं-सुख चिन्तामणि व्रत में चतुर्दशियों में चौदह उपवास, एकादशियों के ग्यारह उपवास, अष्टमियों के पाठ, पञ्चमियों के पांच उपवास, तृतीयाओं के तीन उपवास इस प्रकार कुल ४१ उपवास करने चाहिए । इस व्रत में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का कुछ भी नियम नहीं है,