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व्रत कथा कोष
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दिन एकाशन करना, तीसरे दिन उपवास फिर एकाशन, इस प्रकार तीस दिन करना चाहिये, इसमें सम्पूर्ण कषायों का त्याग करना चाहिये, सोने या चांदी का या ताम्बे का यन्त्र बनाना चाहिये । उसमें १६ घर बनाना चाहिये, उन १६ घरों में १६ भावना लिखनी चाहिये । रोज एक भावना का चिन्तन मनन करना चाहिये । और श्रसि श्रा उ सा दर्शनविशुद्धि षोडषकारणेभ्यो नमः
ॐ ह्रीं इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिये । व्रत सोलह वर्ष करना चाहिये, व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये । तीसरी विधि :-- तीन प्रतिपदा, दो श्रौर दो चतुर्दशी इस पर्व के दिन प्रोषधोपवास एकाशन करना । इसके अलावा बहुत सी विधियां
पंचमी, दो अष्टमी, दो एकादशमी करना । ये ११ उपवास और दूसरे इस व्रत की दिखाई देती हैं ।
यह व्रत करने से तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध होता है । यह व्रत करते समय एक-एक भावना का चिन्तन करना । इसकी १६ भावनाएं हैं ।
(१) दर्शन विशुद्धि ( २ ) विनयसम्पन्नता ( ३ ) शीलव्रतेष्वनतीचार (४) श्रभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ( ५ ) संवेग ( ६ ) शक्तित्याग ( ७ ) शक्तिस्तय ( ८ ) साधु समाधि ( ९ ) वैयावृत्यकरण (१०) अर्हतभक्ति ( ११ ) प्राचार्यभक्ति ( १२ ) उपाध्याय भक्ति (१३) प्रवचन भक्ति (१४) आवश्यक परिहारि (१५) मार्ग प्रभावना ( १६ ) प्रवचन वात्सल्यत्व ।
इस व्रत के उद्यापन में २५६ कोष्टक का मण्डल बनाना चाहिए । पहले मण्डल पर दर्शन विशुद्धि के १६८ कोष्टक, दूसरे मण्डल पर विनय सम्पन्न के ५ कोष्टक, तीसरे मण्डल पर शील भावना के १० कोष्टक, चौथे अभीक्ष्ण भावना के २ कोष्टक, पाँचवें संवेग भावना के १४ कोष्टक छठे शक्ति त्याग के ४ कोष्टक सातवें मण्डल शक्तिस्त के १४ कोष्टक, ८वें मण्डल साधु समाधि के ४ कोष्ठक हवें मण्डल वैयावृत्य के ४ कोष्टक १० वें मण्डल पर अर्हतभक्ति के १३ कोष्टक, ११वें श्राचार्य भक्ति के १२ कोष्टक, १२वें बहुश्रुत भक्ति के २ कोष्टक, १३वें प्रवचन भक्ति के ५ कोष्टक, १४वें श्रावश्यक परिहार के ६ कोष्टक, १५ वें मार्ग प्रभावना के १० कोष्टक, १६ वें प्रवचन वात्सल्य के ४ कोष्टक इस प्रकार २५६ कोष्टक बनाना । अगन्यास, स्वस्तिवाचन
जलयात्रा, अभिषेक, मंगलाष्टक, सकलीकरण,