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व्रत कथा कोष
अथ षोडशविद्या देवता व्रत कथा व्रत विधि-पहले के समान सब क्रिया करके अन्तर सिर्फ इतना है कि आषाढ़ शु० १० के दिन एकभुक्ति (एकाशन) करे, ११ के दिन उपवास करें।
___ जाप-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं शांतिनाथाय गरुडयक्ष महामानसीयक्षी सहिताय नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प से जाप दें। महीने में एक दिन उस तिथि को पूजा करें। ऐसी सोलह पूजा पूर्ण होने पर कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करें।
शांतिनाथ विधान व पूजा करें । पात्र में १६ पान रखकर उस पर अष्टद्रव्य व नारियल रखें । महाय॑ जयमाला पढ़कर दें। षोडश विद्या देवता की पृथक-पृथक अर्चना करावें । उद्यापन करे ।
कथा
जम्बूद्वीप में ऐरावत क्षेत्र में गांधार नामक बड़ा देश है। उसमें विध्यपूर नामक सुन्दर नगर है, वहां पर विद्यासेन नामक राजा अपनी स्त्री लक्ष्मीमती सहित राज्य करता था । उसको नलिनकेतु पुत्र, नलिनाक्षी नामक स्त्री थी। कमलकीर्ति नामक पुरोहित व कमलावती उसकी स्त्री, विजयंधर नामक मन्त्री व विजयावती उसकी स्त्री, धनमित्र नामक श्रेष्ठी व उसकी पत्नी श्रीदत्ता थी।
___ एक दिन नगर में विमलप्रभ नामक मुनि पाहार के लिए आये, नवधाभक्तिपूर्वक पडगाहन करके विधिपूर्वक आहार दिया। फिर राजा ने प्रश्नोत्तर कर यह व्रत लिया और यथाविधि व्रत का पालन किया। जिससे बहुत समय तक सुख से राज्य किया फिर अपने पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा ली। घोर तपश्चरण किया। इस अत से व तपश्चरण से राजा मोक्ष गये ।
__ अथ षट्कन्याका व्रत कथा व्रत विधि-ज्येष्ठ शु० ४थी के दिन एकाशन करे, ५ के दिन शुद्ध कपड़े पहनकर मन्दिर जायें । वेदि पर पद्मप्रभु की मूर्ति विराजमान कर कुसुमवर यक्ष व मनोवेगायक्षी की स्थापना करे । पंचामृत अभिषेक करे । अष्ट द्रव्य से अभिषेक करे ।