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________________ प्रत कथा कोष नामक एक लड़की थीं। इस विजय को सूतारा नामक स्त्री थी और विजयभद्र को विजयावति नामक पतिव्रता स्त्री थी। इस सारे परिवार सहित राजा सुख से राज्य करता था । ... .... .21 T: .. त्रिपृष्ठ को चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई जिससे वह त्रिखण्डाधिपति बना । संसार मोह के कारण व गुरुद्रोह के कारण वह पहले नरक गया पर उसका लड़का विजय भद्र-परिणामी था, उसको संसार से वैराग्य हो गया जिससे उसने अपने पुत्र को राज्य देकर सुवर्णकुम्भ मुनि के पास दीक्षा ली। तपश्चरण कर सब कर्मों का क्षय करके मोक्ष गये । श्री विजय भद्ग प्रादि श्रावक के व्रत लेकर राज्य सुख को भोगने लगे। -९१ .:. एक दिन राज्य सभा में बैठा था कि एक अमोघचिह्न नामक एक अष्टांगनिमित ने वज्रपात निवारण का उपाय बताया । राजा ने वह उपाय किया जिससे बच गया और सुख से रहने लगा। एक दिन अशनिघोष विद्याधर ने उसकी पत्नी सुतारा का हरण किया जिससे दोनों के बीच युद्ध हुआ। पर अमिततेज नामक विद्याधर की सहायता से वह विजयी हुअा। अशनिघोष, डर करके विजयजिनेश्वर के समीशरण में गया। वहां पर यह पूरा परिवार भी गया था, वहाँ धर्मोपदेश सुनकर अमिततेज ने दोनों हाथ जोड़कर पूछा कि सुतारा का हरण करने का कारण क्या है । यह सुन केवली तीर्थंकर ने कहा मलय देश में रत्नसंचयपुर नगर है, वहां पर श्रीषेण नामक राजा और उसको सिंहनंदिता व अनिंदिता नामक दो स्त्रियां थीं । उसको इन्द्र व उपेन्द्र ऐसे दो पुत्र थे। उसी नगर में सात्यकी नामक एक ब्राह्मण था, उसको सत्यभामा नामक एक कन्या थी। उस नगर के पास ही एक गांव था उसमें धरणोजट नामक एक बड़ा विद्वान वैदिक ब्राह्मण रहता था। उसको अग्रीला नामक स्त्री थी, उसको इन्द्रभूति व अभिभूति ऐसे दो पुत्र थे । उसको कपिल नामक एक दासीपुत्र था। जब वह ब्राह्मण अपने दोनों पुत्रों को वेद सिखाता था तब वह कपिल भी छिपकर सब सुनता था। वह तीव्र बुद्धिवान था। अतः उसे चारों वेद का मुख पाठ हो गया । जब ब्राह्मण को यह बात ज्ञात हुई तो उसने उसको निकाल दिया । . ... . ..: ... तब वह कपिल' ब्राह्मण रत्नसंचय नगर में गया । वहां पर वो सात्यकी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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