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व्रत कथा कोष
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दुःख की बातचीत करके महीपाल ने अपनी गलती की माफी माँगी । व उनको घर चलने की विनती की । तब मनोरमा ने कहा
"मेरे पर कलंक लगा है जब तक वह दूर नहीं होगा तब तक में अपने घर की एक भी सीढ़ी नहीं चढूंगी । हां, मैं आपके साथ ग्राऊंगी पर गांव के बाहर रहूंगी।
राजा को उसके आने की बात मालूम हुई । उसके कहे अनुसार राजा ने न्याय करने का निश्चय किया और दरबार में बुलाया । देवों को भी अवधिज्ञान से यह बात ज्ञात हुई जिससे उन्होंने सोचा कि यदि इस समय शील का माहात्म्य नहीं बताया तो लोगों को इसका महत्व ज्ञात नहीं होगा ।
उन्होंने नगर के बाहर दरवाजे बंद किये, वह दरवाजे किसी से भी नहीं खुले, यह बात नगर के बाहर - अन्दर हा हा करते हुए सब जगह फैल गई । इतना ही नहीं यह बात राजा के कान पर भी गयी । दरवाजे खोलने के लिए सब ने बहुत ही प्रयत्न किये पर सब व्यर्थ गये । राजा को बड़ी चिंता हुई । राजा ने अन्नपानी का त्याग किया। सारी जनता चिंताग्रस्त थी । दो दिन निकल गये फिर राजा को स्वप्न में आकर देव ने कहा
" राजन ! जो कोई स्त्री पतिव्रता होगी उसके अंगूठे के स्पर्श मात्र से दरवाजा खुलेगा नहीं तो कितना भी प्रयत्न किया तो व्यर्थ जायेगा। दूसरे दिन राजा ने पूरे राज्य में कहलवा दिया, हजारों स्त्रियां दरवाजे पर दरवाजा खोलने के लिए गयी पर सब व्यर्थ गया । अन्त में मनोरमा का नम्बर आया। उसके स्पर्श से ही दरवाजे खुल गये ।
स्वर्ग के देवों ने उसका जयजयकार किया व पुष्पवृष्टि की और उसके शील के गीत गाये । इस प्रकार मनोरमा अपने दोषों को दूर कर ससुर के घर गयी । इसलिए शील का उत्तम रीति से पालन करना चाहिए, इसी से जीव का कल्याण है, शीलव्रत का पालन मोक्ष है ।
शील सप्तमी व्रत
भाद्रपद सुदी सप्तमी को प्रोषधोपवास करना, ७ वर्ष यह व्रत करना ।