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________________ व्रत कथा कोष [ ५४१ दिन रोहिणी हो उस दिन व्रत करना, अन्य नक्षत्रों में व्रत नहीं किया जाता है । रोहिणी के अनन्तर अर्थात् मृगशिर नक्षत्र में पारणा की जाती है । शुक्ल पञ्चमी, कृष्ण पञ्चमी, जिन गुण सम्पत्ति, ज्येष्ठ जिनवर, कवल चान्द्रायण आदि व्रतों को इसी प्रकार मासावधि समझना चाहिए । रोहिणी व्रत तीन वर्ष, पाँच वर्ष या सात वर्ष प्रमारण किया जाता है, ऐसा वसुनन्दो, सकलकीत्ति, छत्रसेन, सिंहनन्दि, मल्लिषेण, हरिषेण, पद्मदेव, वामदेव आदि प्राचार्यो ने कहा है । अन्य अर्वाचीन आचार्य दामोदर, देवेन्द्रकीत्ति, हेमकीर्त्ति आदि ने भी इसी बात को बतलाया है । विवेचन :- रोहिणी व्रत प्रतिमास रोहिणी नामक नक्षत्र जिस दिन पड़ता है, उसी दिन किया जाता है। इस दिन चारों प्रकार के आहार का त्याग कर जिनालय में जाकर धर्मध्यानपूर्वक सोलह पहर व्यतीत करे अर्थात् सामायिक, स्वाध्याय, पूजन, अभिषेक में समय को लगाया जाता है । शक्त्यनुसार दान भी करने का विधान है । इस व्रत की अवधि साधारणतया ५ वर्ष पांच महीने की है, इसके पश्चात् उद्यापन कर देना चाहिए । रोहिणी व्रत के समय का निश्चय करते हुए प्राचार्य ने कहा है कि यदि रोहिणी नक्षत्र किसी भी दिन पञ्चांग में एक-दो घटी भी हो तो भी व्रत उस दिन किया जा सकता है । जब रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव हो तो गणित के हिसाब के कृत्तिकाकी समाप्ति होने पर रोहिणी के प्रारम्भ में व्रत करना चाहिए । मृगशिर अथवा कृत्तिकाको व्रत करना निषिद्ध है, इन नक्षत्रों में व्रत करने जाता है । जब तक सूर्योदय काल में रोहिणी नक्षत्र मिले तब रोहिणी नक्षत्र नहीं ग्रहण करना चाहिए । यद्यपि आगे प्राचार्य नक्षत्र ग्रहण करने के लिए विधान करेंगे, पर छः घटी के प्रमाण भी उदयकालीन रोहिणी ग्रहरण किया जा सकता है । से व्रत निष्फल हो तक अस्तकालीन छः घटी प्रमाण ही अभाव में एक दो घटी रोहिणी व्रत की अन्य व्यवस्था तथान्यैः प्रोक्तं रोहिण्यां दशलक्षण रत्नत्रयषोडशकाररण- व्रतवत् रसघटिका प्रमाणं ग्राह्यामिति श्रन्यत् देवनन्दिमुनिभिः प्रोक्तं यत् दिवसे क्षीणे नियमस्तुते कार्या:,
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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