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व्रत कथा कोष
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जाकर दोनों मुनिराजों से क्षमा मांगी और नमस्कार कर नगर में वापस लौट आया, वे दोनों मुनिराज तपश्चरण करके समाधिमरण पूर्वक मरकर स्वर्ग में देव हये, वहाँ से चयकर वे दोनों राजा दशरथ के यहाँ राम लक्ष्मण होकर जन्मे । राम मुनि बनकर तपश्चरण करके मोक्ष को गये, लक्ष्मण आगे मोक्ष को जायेंगे । जो राजा था, उसने रामनवमी का व्रत पुत्रों के बदले स्वयं पालन किया, अंत में उद्यापन किया, अंत में दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष को गया ।
रोहिणी व्रत करने की प्रावश्यकता ___ यथा शुक्ल कृष्ण पक्षयोः पञ्चदशदिनेषु प्रष्टम्यां चतुर्दश्याञ्चोपवासः तथैव सौभाग्यनिमित्तं स्त्रियः सप्तविंशतिनक्षत्रेषु रोहिण्याख्यनक्षत्रे उपवासं कुर्वन्ति ।
अर्थ :-जिस प्रकार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के पन्द्रह-पन्द्रह दिनों में प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास किया जाता है, उसी प्रकार स्त्रियां अपने सौभाग्य की वृद्धि के लिए सत्ताईस नक्षत्रों में से रोहिणी नक्षत्र का उपवास करती हैं।
रोहिणीव्रत का फल रोहिणीव्रतोपवासस्य कि फलमिति चेत्तदुक्तं योगीन्द्र देवैः__दोवई दिगई जिरगवरहं मोहहु होइ ण ठाड ।
अह उववासहि रोहिरिणहिं सोउ विपलहु जाई ।। [सावयधम्मदोहा १८८ दूहा, पृ० ५६ ।]
अर्थ :-रोहिणी व्रत के उपवास का क्या फल है ? प्राचार्य योगीन्द्रदेव ने फल बतलाते हुए कहा है
जिनेन्द्र भगवान् को दीप चढ़ाने से मोह को स्थान नहीं मिलता अर्थात् मोह नष्ट हो जाता है तथा रोहिणी व्रत के उपवास से शोक भी प्रलय को पहुंच जाता है । अभिप्राय यह है कि रोहिणी व्रत करने से सभी प्रकार के शोक, दारिद्र य आदि नष्ट हो जाते हैं।