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व्रत कथा कोष
तिनके पाछे बाजत ढोल, किंकर जन तब बोलत बोल । पाप श्रनिति करें जो कोय, ते नर की गति ऐसी होय ।। १०१ ॥
धर्म न्याय श्री वर्मा करो, नगर लोग सब प्रानन्द भरो ।
जे जंकार सकल जग भयो, देश देश में
नृप जस लियो || १०२ ॥
देश निकारो दोनो राय, अब यह कथा कुरू जांगल है देश प्रधान, हस्तनागपुर महापद्म राजा को नाम, लक्ष्मीमती प्रिया शुभधाम । तिनके पुत्र दोय श्रवतरे, पदम विष्णु दोनों गुण भरे ||१०४ || एक दिवस महा पदम प्रधान, राजा जीव बिलोचन जान । जिन चरणन पूजा रति सोय, जंगते तब उदास तिह होय ।। १०५ ।।
उन्हीं सघ जाय ।
तह शुभ थान ।। १०३ ॥
१५०५
जेष्ठ पुत्र तिन लियो बुलाय, राज्य भार सब सौप्यौं जाय । श्रापुन श्रुत सागर मुनि पास, लोनी दीक्षा परम उदास ।। १०६ ।। विष्णु कुमार संघ व्रत धरे, दोऊ जने घोर तप करे । तधपि तिन मे विष्णु कुमार, भये ध्यान परायन सार ।।१०७।। तिनके वेक्रिया रिद्ध |
करि जिनोक्त तपस्या सिद्ध, उपजी तप बल रिद्धि-सिद्धि सब पाय, धरनी भूषण गिर पर जाय ।। १०८ ।। राज, सेना सहित सकल सुख साज । चार, विप्र यहां प्राये सब द्वार ||१०६ ॥
राज्य तुम ईस ।
धर अब पद्म करै निज बलहि श्रादिदे मन्त्री श्रानि पद्म को दई प्रसीष, श्रविचल होय दिन दिन तेज बढे प्रताप, बाढ धर्म धरं महाराज कहिये एक बार, बदन मलीन देख्यो तुम्हार । हमको बड़ी शंका भई, कौन भीर तुमको उपजई ।। १११ ।।
अरि पाप ॥११०॥
तब इन सो बोले निजराय, कहा कहो कछु कहिये न जाय । नगर कुम्भ पूरब की प्रोर, कोनन कोर खाई चहुं ओर ।। ११२ ।।