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व्रत कथा कोष
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आयो संघ तिष्ठि बन मांहि, मुनिवर एक प्रहार को जांहि । तापै सुनियो ऐसो तन्त, राजा जैनी मिथ्या मन्त्र ॥२५॥ जब नृप की गति ऐसी सुनी, तब मुनिवर गहि मूडी धुनी । खोटी संगत पहुंचे प्राय, जोग मध्य जबै नहि जाय ॥२६।। तब मुनि अपनो संघ बोलाय, विनय सहित कहियो समुझाय । राजा आदि और सब लोई, तुम्हरे ढिग जो प्रावै कोई ॥२७।। काहू सन बौलो मति भूल, पावत नात वचन लघु भूलि । जो कबहू बोलउगे कोई, तो विनाश सब हिन को होई ॥२८।। जब ही सुनियो मुनि के बैन, इस भव पर भव के सुख दैन । लियौ मीन व्रत सब हिन तबे, ध्यानारूढ भये मुनि सबे ॥२६॥ शिष्य सोय जो गुरु आदरै, जो गुरु वचन प्रसंसा करे। प्रीति विनय जो मानै नहीं, ना तरु कुल कुपुत्र है सही ॥३०॥ ये ते मे पुरजन समुदाय, सकल लोग मिलि बन्दन जाय । वसु विधि पूजा लै लै संग, नर नारि सब बन बनि रंग ॥३१॥ अपने मन्दिर बैठो राय, मुनिवर या सब देखी समाज । बिना परब बिन तिथि त्यौहार, कहां जात सब लोक अपार ॥३२॥ इतनी सुन तहिं बोलो धाय, मन्त्री दृष्ट राय के प्राय । महाराज तुम्हरे उद्यान, नगिन दिगम्बर उतरे पान ॥३३॥ तिनको यह सब वन्दन जाय, जिनके कछु विवेक हित नाय । ज्ञान रहित जन मूर्ख मांहि, सो सब वन्दन को उमगाहिं ॥३४॥ इतनी सुन कर बोल्यो राई, चलो तो हम देखे जाई । कैसे है मुनि वो प्रवीन, धर्म ध्यान मे मत लवलीन ॥३४॥ ये कौतुक देखै चलो जाय, फिर प्रानन्द घर बैठे प्राय । इनमे हमरो कोह न जान, सुनियत है मुनि मेरु समान ॥३६॥