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________________ व्रत कथा कोष [ ४६५ ॐ ह्रीं चतुर्विशति तीर्थ करेभ्यो नमः स्वाहा । इस प्रकार इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे १०८ बार णमोकार मन्त्र का जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक पूर्ण अर्घ्य चढ़ावे, विष्णुकुमार मुनि की और अकंपनाचार्यजी की पूजा करे । अन्त में होमविधि करके प्रत्येक श्रावक वर्ग यज्ञोपवीत धारण करे। यज्ञोपवीत धारण करने का मन्त्र : ॐ नमः परमशांताय शान्तिकराय पवित्रीकृतायाहम् रत्नत्रय स्वरूपं यज्ञोपवीतं दक्षामि मम् गात्रं पवित्रं भवतु अहं नमः स्वाहा । इस मन्त्र को पढ़कर यक्षोपवीत धारण करे, उस दिन उपवास करे। उस दिन ॐ ह्रीं श्रीं चंद्रप्रभुजिनाय कर्मभस्म विधूनमं सर्वशांति वाल्सत्योपवद्ध नं कुरू कुरू स्वाहा। इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे, रात्रिजागरण करे, भक्तामर व कल्याण मन्दिरादि स्तोत्र पढ़े, प्रतिपदा को पूजा दान करके स्वयं एकाशन करे, भोजन में एक धान खावे, दूधभात, दहीभात खावे, इस व्रत को पाठ वर्ष करे, अन्त में उद्यापन करे । श्रेयांसनाथ तीर्थंकर का निर्वाण लड्डू चढ़ावे, उनका जीवन चरित्र पढ़े। कथा अडिल्ल प्रथमहि प्रथम जिनेन्द्र चरण चितु लाइये। पंच महाव्रत धरम सुताहि मनाइये ॥ प्रथम महा. मुनि भेष सुधर्म धुरन्धरो । प्रथम धरम परगासन प्रथम तीर्थ करो ॥१॥ गीता छन्द प्रथम तीर्थ कर सुमिर मन शारदा निज मन धरो। गुरु चरण बन्दो शुद्ध मन करि कथा अनुपम विस्तरौ ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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