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व्रत कथा कोष
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पुत्र चिन्ता को करने लगे। एक दिन उस नगर के उद्यान में बोधसिंधु नामक मुनिराज संघ सहित प्राकर उतरे, राजा को समाचार प्राप्त होते ही पुरजन-परिजन सहित नगर के उद्यान में मुनिदर्शन को गया, मुनिदर्शन कर कुछ क्षण धर्मोपदेश सुना, फिर हाथ जोड़कर नमस्कार करता हुअा कहने लगा कि हे गुरुदेव मेरे सन्तान सुख नहीं है सो मुझे संतान उत्पति होगी कि नहीं, तब मुनिराज कहने लगे कि हे मन्त्री आपको अवश्य ही सन्तान प्राप्ति होगी लेकिन सोलह वर्ष की उम्र में उसको सर्प काट लेगा, और वह मर जायेगा।
___ यह सुनकर मन्त्री को हर्ष और विषाद दोनों ही हुए, सर्वजन नगर में वापस लौट पाये, प्रागे कुछ वर्ष निकल जाने के बाद मन्त्री को संतान प्राप्ति हुई, उस पुत्र का नाम मृत्युञ्जय रखा, मन्त्री ने एक नवीन मन्दिर बनाकर प्रतिमा स्थापन कर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा की और उसी मन्दिर में चिता से आक्रान्त होकर धर्मानुष्ठान करने लगा, एक दिन मृत्युञ्जयकुमार अपने मित्र के साथ में तीर्थक्षेत्र यात्रा के लिये निकला, मार्ग में कनकपुर नगर के उद्यान में एक पेड़ की छाया में ठहर गया।
उसका मित्र भोजन सामग्री लेने को गांव में गया, उसी उद्यान में जो पूर्व का वरदत्त सेठ अपने सुधर्म नाम के कुरूप पुत्र का लग्न करने को वहां पाया था, उसकी पत्नी सुभद्रा वहां के सरोवर में पानी को आई, वहां उसने पेड़ के नीचे ठहरे हुये मृत्युञ्जय को देखा, उसके पास जाकर उसके पांव दबाने लगी, तब वह कहने लगा कि ये तुम क्या कर रही हो, ये. तो अनुचित कार्य है, तब वह कहने लगी कि हे कुमार तुम सुनो मेरा एक कुरूप पुत्र है, उसका कोई भी विवाह नहीं करता है ।
इसलिये उसके बदले तुम्हारा विवाह करूंगी, मात्र एक यही उपाय है, तुम्हारे सरीखे सज्जन का पर-उपकार करना परम अावश्यक कार्य है, क्योंकि कहा भी है, सत्पुरुषा: सोपकारिणः । इसलिये मैं तुम्हारे पास आई हूँ। तब वह मृत्यु
जयकुमार कहने लगा कि हे मां मेरा मित्र नगर में भोजन के लिये गया है, उसके प्राने पर विचार कर कहता हूं। इतने में उसका मामा वहां आ गया, और मृत्युजय ने सब बात कह सुनाई, उसके मामा ने इस कार्य के लिये अनुमति दे दी, तब