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व्रत कथा कोष
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भव में छठे नरक में थे, तोसरे भव में ब्राह्मण के घर में दुर्गन्धा होकर पैदा हुये, मुक्तावली व्रत को पालन करके देवपर्याय प्राप्त किया, वर्तमान में तुम मिथिलापुरी के पृथ्वीपाल राजा के घर पद्मरथ नाम के पुत्र होकर जन्मे।
इस प्रकार अपने पूर्वभवों को सुनकर तत्काल वैराग्य उत्पन्न हुआ, तब जिनदीक्षा धारण कर समशवरण में धर्मरथ नाम के गणधर बन गये । प्रागे घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञानी हये, फिर अघातिया कर्मों का भी नाश करके मोक्ष को गये।
___ इसलिये हे भव्यो ! आप भी मक्तावली व्रत को भक्तिभाव से यथाविधि पालन करो, और उस व्रत का उद्यापन करो, तुमको भी सद्गति की प्राप्ति होगी।
माघमाला व्रत कथा माघ शुक्ला पोर्णिमा के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाभिषेक का सामान हाथ में लेकर जिनमन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, मन्दिर में दीपक जलावे, मण्डपवेदी को खूब सजाकर वेदी पर अष्टदलाकर पांच रंगों से निकाले पाठ कलश सजाकर पाठों दिशानों में रखे, एक बड़ा मंगल कलश सजाकर मंडल के मध्य में रखे, ऊपर एक थाली में यन्त्र निकालकर थाली कलश के ऊपर रखे, अभिषेक पीठ पर पंचपरमेष्ठि भगवान की मूर्ति को स्थापन कर भगवान का पंचामृताभिषेक करे, भगवान को एक सुगन्धित फलों की माला चढ़ावे, उसी प्रकार अपरान्हकाल में भी अभिषेक कर माला समर्पण करे, थाली में नवदेवता यन्त्र चंदन से निकाले, उस यन्त्र पर नवदेवता प्रतिमा स्थापन कर अष्टद्रव्य से पूजा करे, नैवेद्य चढ़ावे, श्रुत की पूजा व गणधर पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल पूजा भी करे ।
ॐ ह्रीं अहं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का भी १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक महाअर्घ्य थाली में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत को पालन करे, उपवास