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________________ व्रत कथा कोष एक दिन रात के समय उल्कापात को देखकर राजा को वैराग्य हो गया। तब वह अपने पुत्र को राज्य देकर जंगल में गये, वहां जिनदीक्षा ली और तपश्चर्या करने लगे, अन्त समय समाधिपूर्वक मरण हुना जिससे वे अच्युत स्वर्ग में देवेन्द्र हुये । वहां से चय कर वे पद्मावती रानी के गर्भ से पद्मदत नाम से उत्पन्न हुए । युवावस्था में चक्रवर्ती होकर राज्य सुख भोगा। बाद में बहुत समय तक राज्य किया और संसार से वैराग्य उत्पन्न होने से अपने पुत्र को राज्य देकर जंगल में गया। वहां एक मुनि से दिगम्बरी दीक्षा धारण की और घोर तपश्चरण किया जिससे सब कर्मों का क्षय करके मोक्ष गये । यही इस व्रत का महत्व है। अथ पंचकूमार व्रत कथा अथवा गुरुवार व्रत कथा व्रत विधि :-पहले के समान सब विधि करे । अन्तर केवल इतना है कि कार्तिक के शुक्लपक्ष में पहले बुधवार को एकभुक्ति (एकाशन) करे और गुरुवार को उपवास करे । पूजा वगैरह करे। पंचपरमेष्ठी की आराधना कर वस्तुकुमार, वायुकुमार, मेघकुमार, अग्निकुमार व नागकुमार, इनकी क्रम से पांच पान मांडकर अर्चना करे। ___ इस प्रकार पांच गुरुवार को पांच पूजा पूर्ण होने पर अन्त में फाल्गुन अष्टान्हिका में इनका उद्यापन करे । पांच मुनि व आर्यिका को आहारदान दे, उसी प्रकार पांच दम्पति को भोजन करावे । कथा मंगलावती देश में मंगलपुर नगर है, वहां पर पहले सुमंगल नामक एक गुणवान सदाचारी शूरवीर राजा राज्य करता था । उसकी मंगल देवी नामक स्त्री थी। उसको जयमंगल नामक पुत्र था उसकी स्त्री जयावती थी, उसको विजयकीर्ति नामक पुरोहित, गजगामिनी नामक स्त्री और विजय नामक सेठ व यमुनादता नामक स्त्री थी। ___ एक दिन विजयसेन नामक महामुनि उस नगर के उद्यान में पाये । राजा अपने पूरे परिवार सहित उनके दर्शन को गया । धर्मोपदेश सुनकर राजा ने कोई एक व्रत विधान बताने की प्रार्थना की। महाराज ने उन्हें यह व्रतविधि बतायी उन्होंने यह व्रत
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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