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________________ व्रत कथा कोष इस प्रकार पंचमी से दशमी पर्यंत पांच उपवास करे, श्रावण में पूजाकर उन्हीं तिथियों में पांच एकाशन करे, भाद्र में उन्हीं पांच दिनों में उनोदर करे, आश्विन महिने की उन्हीं तिथियों में कांजियाहार करे, कार्तिक में फलाहार करे, अंत में उद्यापन करे, पंचपरमेष्ठि विधान कर महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे । कथा इस व्रत को पहले शंखनिर्णामिक ने विधिवत् किया था, इसलिये वह बलदेव नारायण हुये, आगे मोक्ष को जायेंगे। कथा रानी चेलना की पढ़े। अथ श्रीपाल व्रत कथा इस जम्बूद्वीप में भरत क्षेत्र है वहां एक कर्नाटक देश है उसमें संकेश्वर नामक शहर है । उसमें शंखपाल राजा राज्य करता था। उसके पुत्र, मित्र, कलत्र मन्त्री, पुरोहित, राजश्रेष्ठी, सेनापति आदि अनेक परिजन थे ओर राजा सुख से राज्य करता था। एक दिन शंखगुप्ताचार्य नामक सुनिश्वर चर्या निमित्त राजघराने की ओर आये, राजा ने पडगाहन करके नवधाभक्ति से आहार दिया, आहार के बाद वे एक पाटे पर बैठ गये । तब थोड़ा धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा ने कहा महाराज मुझे को व्रत दे दीजिए । तब महाराज ने उन्हें श्रीपाल व्रत करने को कहा और व्रत विधि भी बतायी । व्रत विधि :-चैत्र प्रादि १२ महीनों में किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की ४ के दिन एकाशन करे । और सब पहले के समान विधि करे। वेदि पर पचपरमेष्ठि की प्रतिमा रखकर अभिषेक करे। जाप :-ॐ ह्रीं अर्ह अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे, णमोकार मन्त्र का भी जाप करे । इस प्रकार ५ तिथि पूर्ण होने पर इस व्रत का उद्यापन करे । उस समय पंच
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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