SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष [३६३ पड़ते हैं। प्राचार्य ने ऊपर पञ्चमास चतुर्दशी का स्वरूप बतलाते हुए दो मान्यतायें रखी हैं । प्रथम मान्यता में प्राषाढ़ से लेकर कार्तिक तक पांच महीनों की शुक्ला चतर्दशी को उपवास करने का विधान किया है । इस मान्यता के अनुसार कुल पांच उपवास करने पड़ते हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार उपर्युक्त पांच महिनों में दस उपवास करने को पञ्चमास चतुर्दशी व्रत बताया गया है। इन दस उपवासों में शीलव्रत चतुर्दशी के और रूप चतुर्दशी के व्रत भी शामिल कर लिये गये हैं । आषाढ़ सुदो चतुर्दशी को शीलचतुर्दशी कहा जाता है, इस दिन शील व्रत की महत्ता को दिखाने के कारण ही इस व्रत को शील चतुर्दशी व्रत कहा गया है। शीलचतुर्दशी के करने वाले को 'ॐ ह्रीं निरति वारशीलवतधारकेभ्योऽनन्तमुनिभ्यो नमः ।' मन्त्र का जाप करना चाहिए । इस व्रत को करने वाले को त्रयोदशी से शीलव्रत धारण करना होता है । और पूर्णमासी तक निरतिचार रूप से व्रत का पालन करना होता है। रूप चतुर्दशी श्रावण सुदी चतुर्दशी को कहते हैं । इस चतुर्दशी को प्रोषधोपवास करना पड़ता है तथा भगवान आदिनाथ का पूजन-अभिषेक कर उन्हीं के अतिशय रूप का दर्शन करना चाहिए। अथवा किसी भी तीर्थंकर की प्रतिमा का पूजन अभिषेक कर उनके रूप का दर्शन करना चाहिए। इस व्रत की भी पूर्णिमा को पारणा करनी पड़ती है। इसके लिए 'ॐ ह्रीं श्रीवृषभाय नमः' मन्त्र का जाप करना पड़ता है। कथा . राजा श्रेणिक और रानी चेलना की कथा पढ़े । पौष्य कल्याण व्रत पौष महिने के सुदी पक्ष में सप्तमी से यह व्रत शुरू करना । सप्तमी को एकाशन अष्टमी को एकभुक्ति करना नवमी को एक समय भोजन करना चाहिए। दशमी को कांजिकाहार और एकादशी को उपवास करना । इस व्रत में अभिषेक पूजा करनी चाहिये, रात में जागरण करके स्तुतिपाठ बोलना चाहिये । भजन आदि
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy