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________________ व्रत कथा कोष [ ३८६ ८० वन जिन चैत्यालयस्थ जिनबिंबा इत्याव्हानादिकं । ॐ ह्रीं जिनबिम्बेभ्यो जलमित्यादि० । ७६ ॐ ह्रीं विद्युन्मालीमेरूत्तर सौमनसवन जिन चैत्यालयस्थ जिन बिबा इत्याव्हाना दिकं० । ॐ ह्रीं० जिनबिम्बेभ्यो जलमित्यादि० । ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरूत्तरपांडुकवन जिनचैत्यालयस्थ जिनबिंबा इत्याव्हानादिकं ।। ॐ ह्रीं० जिनबिम्बेभ्यो जलमित्यादि । पूर्ण श्रध्यं चढ़ावे, ॐ ह्रीं पंचमेरुस्थित समस्त जिनचैत्यालयेभ्यो महार्घ्यं निर्वपामि स्वाहा । अब श्रुत व गणधर पूजा करके यक्ष, यक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करे । ॐ ह्रीं पंचमेरुस्थित समस्तजिनचैत्य चैत्यालयेभ्यो नमः स्वाहा । 1 इन मन्त्रों से १०८ पुष्पों से जाप्य करे, चतुविध संघ को दान देवे, महाभिषेक करे । कथा कासापुर नगर के धनसेन राजा की कुसुमावली नाम की पुत्री ने इस व्रत को अच्छी तरह से पालन किया, व्रत के प्रभाव से उसको धर्मराज युधिष्ठिर सरोखा पति मिला अन्त में वह आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर घोर तपश्चरण कर समाधि मरण कर स्वर्ग में इन्द्र हुई । आगे क्रमशः मोक्ष को जायेगी । इस की कथा पांडव पुराण में प्रसिद्ध है, वहां पढ़े । प्रथ प्रमत्तगुरणस्थान व्रत कथा व्रत विधि :--- पहले के समान सब विधि करे, अन्तर केवल इतना है कि आषाढ़ शुक्ला ३ के दिन एकाशन करे, ४ के दिन उपवास करे, पूजा वगैरह पहले के समान करे, ६ दम्पतियों को भोजन करावे, वस्त्र आदि दान करे, जिन बिम्ब, जिनालय, जिनपूजा, तीर्थ यात्रा दान, शास्त्र लिखने, प्रतिष्ठा महोत्सव आदि में धन खर्च करे । कथ पहले सुरम्य नगरी में सुरेन्द्र राजा अपनी महारानी सुरमा के साथ रहती था, उसका पुत्र मदन, उसकी स्त्री सुमती, पुरोहित श्रेष्ठ, सेनापति बैगरह पूरा परिवार
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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