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व्रत कथा कोष
मुनिराज के मुह से धर्मोपदेश सुनकर, श्री ने हाथ जोड़कर विनय से कहा हे संसार से पार उतारने वाले स्वामी, आप मुझे मेरे दारिद्र को नाश करने के लिये कुछ उपाय कहो।
मुनिराज ने उस कन्या के विनय सहित वचन को सुनकर देखा कि उसको अन्य व्रत करने की शक्ति नहीं है ऐसा जानकर कहने लगे कि हे कन्ये तुमको श्रुत पंचमी व्रत करना चाहिए, सुनकर उस कन्या को बहुत ही आनन्द हुअा, मुनिराज को भक्ति से नमस्कार कर उस कन्या ने जघन्यरूप से श्रुत पञ्चमी व्रत को स्वीकार किया, और घर आकर व्रत की महिमा और व्रत का स्वरूप मां और बहन को कह सुनाया, सुनकर वो दोनों भी आनन्दित हुई । तब कालक्रम से उन तीनों ने व्रत को विधिपूर्वक पालन किया, आगे वो तीनों सुख से रहने लगी।
कुछ दिन बाद वह कमला मरण को प्राप्त हुई, मरकर इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में एक शुभ देश है उस देश में ब्रह्मपुर नामक एक मनोहर गांव है वहां पहले एक देवसेन नाम का राजा राज्य करता था । उसके जयावती नाम की एक महाराणी थी, उस महारानी के उदर से उस कमला नाम की स्त्री ने व्रत के प्रभाव से प्रभंजन पुत्र के रूप में जन्म लिया, और सम्पति स्त्री ने भी मरकर भरत क्षेत्र के पूर्व देश में पुण्यपुर नगर में पुण्य के प्रभाव से पूर्णभद्र नाम का राजा होकर जन्म लिया । उसी प्रकार कोदंड ब्राह्मण की बहन संप्राप्ति भी भर कर पूर्णभद्र राजा की पृथ्वी. देवी नाम की बहन हुई।
आगे वही पृथ्वीदेवी उस देवसेन राजा का पुत्र जो प्रभंजन था, उसकी वह भार्या हुई, दोनों दम्पति कालक्रम से सुखों को भोगते हुए पूर्वोक्त श्री के जीव ने मरकर व्रतोपवास के पुण्यफल से उस पृथ्वीदेवी के गर्भ से सरल नाम का राजकुमार होकर जन्म लिया ।
इस प्रकार कमला, संपत्ति, श्री ये तीनों जीव कालक्रम से समय व्यतीत करते रहे, एक दिन पृथ्वीदेवी रानो कुमति नाम के मन्त्री को देखकर मन्त्री के ऊपर आसक्त हो गई और वह उसकी सहायता से पूर्व वैरानुसार अपने पति का व पुत्रों का वध करने के लिए उपाय करने लगी, उस स्त्री की दुष्ट प्रवृत्ति को देखकर प्रभंजन