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व्रत कथा कोष
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कथा मथुरा नगरी के राजा जयवर्मा की रानी जयावंति ने एक बार इस व्रत का पालन किया था, उसके प्रभाव से, उसके यहां व्याल महाब्याल नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुये, रानी ने अंत में दीक्षा लेकर तपस्या की, समाधिमरण कर स्वर्ग में देव हुई।
पर्वसागर व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला दशमी के दिन शुद्ध होकर जिन मन्दिर जावे, भगवान को नमस्कार करे, शीतलनाथ तीर्थंकर व यक्षयक्षि सहित भगवान का पंचामृत अभिषेक करे । फिर पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की पूजा करे।
___ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं शीतलनाथ तीर्थंकर ईश्वर यक्ष मानवी यक्षी सहिताय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक महाअर्घ्य पूर्वोक्त विधि से चढ़ावे, मंगल आरती उतारे, यथाशक्ति उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, आहार दान देवे ।
इस प्रकार दस महिने तक इसी तिथि को व्रत और पूजा करे, उस समय शीतलनाथ तीर्थंकर का विधान करे, महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को दान देवे ।
कथा इस व्रत को वसुदेव ने किया था, उन्हीं की कथा पढ़े। कृष्ण पुराण और वसुदेव कथा पढ़े।
पुण्यसागर व्रत कथा ___ आषाढ़ व कार्तिक अथवा फाल्गुन की अष्टान्हिका में किसी भी अष्टान्हिका की सप्तमी को शुद्ध होकर मन्दिर जावे, भगवान को नमस्कार करे, नवदेवता और पंचपरमेष्ठि भगवान का पंचामृताभिषेक करे, उनकी पूजा करे, श्रुत व गणधर व यक्षयक्षी व क्षेत्रपाल की पूजा करे। .
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ।